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तू॒तु॒जा॒नो म॑हेम॒तेऽश्वे॑भिः प्रुषि॒तप्सु॑भिः । आ या॑हि य॒ज्ञमा॒शुभि॒: शमिद्धि ते॑ ॥

English Transliteration

tūtujāno mahemate śvebhiḥ pruṣitapsubhiḥ | ā yāhi yajñam āśubhiḥ śam id dhi te ||

Pad Path

तू॒तु॒जा॒नः । म॒हे॒ऽम॒ते । अश्वे॑भिः । प्रु॒षि॒तप्सु॑ऽभिः । आ । या॒हि॒ । य॒ज्ञम् । आ॒शुऽभिः॑ । शम् । इत् । हि । ते॒ ॥ ८.१३.११

Rigveda » Mandal:8» Sukta:13» Mantra:11 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:8» Anuvak:3» Mantra:11


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SHIV SHANKAR SHARMA

इस मन्त्र से प्रार्थना करते हैं।

Word-Meaning: - (महेमते) हे महाफलदाता हे महामति परमविज्ञानी परमात्मन् ! यद्यपि तू (प्रुषितप्सुभिः) स्निग्धरूप (आशुभिः) शीघ्रगामी (अश्वेभिः) संसारस्थ पदार्थों के साथ (तूतुजानः) विद्यमान है ही, तथापि (यज्ञम्) हमारे यज्ञ में (आयाहि) प्रत्यक्षरूप से आ। (हि) क्योंकि (ते) तेरा आगमन (शम्+इत्) कल्याणकारक होता है। तेरे आने से ही यज्ञ की सफलता हो सकती है ॥११॥
Connotation: - यज्ञादि शुभकर्मों में वही ईश पूज्य है, अन्य देव नहीं। उसी का पूजन कल्याणकर होता है ॥११॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (महेमते) हे महाफलोत्पादक बुद्धिवाले ! (तूतुजानः) शीघ्रता करते हुए आप (प्रुषितप्सुभिः) स्निग्ध=कामप्रदरूपवाली (आशुभिः) शीघ्रगामी (अश्वेभिः) शक्तियों द्वारा (यज्ञम्, आयाहि) यज्ञ के प्रति आइये (हि) क्योंकि (ते) आपके आने में (शमित्) सुख ही सुख है ॥११॥
Connotation: - इस मन्त्र में अलंकार द्वारा परमात्मा को संबोधित करते हुए याज्ञिक पुरुषों का कथन है कि हे शुभफलों के दाता परमात्मन् ! आप हमारे यज्ञ को प्राप्त होकर अर्थात् अपनी शक्ति द्वारा हमारे यज्ञ को पूर्ण करें, जिससे हम सुख अनुभव करते हुए आपकी उपासना में प्रवृत्त रहें ॥११॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अथ प्रार्थनां करोति ।

Word-Meaning: - हे महेमते ! महे=महते फलाय मतिर्यस्यासौ महेमतिः “अलुक्छान्दसः” स तादृश हे इन्द्र। प्रुषितप्सुभिः=स्निग्धरूपैः। आशुभिः=शीघ्रगामिभिः। अश्वेभिः=संसारस्थैः पदार्थैः सह। तूतुजानः=विद्यमानोऽसि तथापि अस्माकं यज्ञम्। आयाहि=आगच्छ। हि यतस्ते गमनम्। शमित्= कल्याणकरमेवास्ति ॥११॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (महेमते) हे महाफलाय कृतबुद्धे ! (तूतुजानः) त्वरमाणः (प्रुषितप्सुभिः) कामप्रदरूपैः (आशुभिः) द्रुतगमनैः (अश्वेभिः) शक्तिरूपाश्वैः (यज्ञम्, आयाहि) यज्ञं प्रत्यागच्छ (हि) यतः (ते) तवागमने (शम्, इत्) सुखमेव ॥११॥