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इ॒यं त॑ ऋ॒त्विया॑वती धी॒तिरे॑ति॒ नवी॑यसी । स॒प॒र्यन्ती॑ पुरुप्रि॒या मिमी॑त॒ इत् ॥

English Transliteration

iyaṁ ta ṛtviyāvatī dhītir eti navīyasī | saparyantī purupriyā mimīta it ||

Pad Path

इ॒यम् । ते॒ । ऋ॒त्विय॑ऽवती । धी॒तिः । ए॒ति॒ । नवी॑यसी । स॒प॒र्यन्ती॑ । पु॒रु॒ऽप्रि॒या । मिमी॑ते । इत् ॥ ८.१२.१०

Rigveda » Mandal:8» Sukta:12» Mantra:10 | Ashtak:6» Adhyay:1» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:10


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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वर के निर्माण का महत्त्व दिखलाते हैं।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! (ते) तेरा (धीतिः) संसारसम्बन्धी विज्ञान (नवीयसी) नित्य अतिशय नवीन-नवीन (एति) हम लोगों की दृष्टि में आता है। कहाँ नवीनता प्रतीत होती है, इसको विशेषण द्वारा दिखलाते हैं (ऋत्वियावती) वह धीति ऋतुजन्य वस्तुवाली है अर्थात् प्रत्येक वसन्तादिक ऋतु में एक-२ नवीनता प्रतीत होती है। यहाँ ऋतु शब्द उपलक्षक है। जिस प्रकार पृथिवी के भ्रमण से नव-२ ऋतु आता है, इसी प्रकार इस सौर जगत् का तथा अन्यान्य जगत् का भी परिवर्तन होता रहता है। एवंविध सर्व वस्तु नवीनता दिखलाती है। पुनः कैसी है (सपर्यन्ती) सर्व प्राणियों के मन को पूजन करनेवाली अर्थात् जिससे सबका मन प्रसन्न होता है, पुनः (पुरुप्रिया) सर्वप्रिया है, पुनः (मिमीते+इत्) सदा नवीन-२ वस्तु का निर्माण करता ही रहता है ॥१०॥
Connotation: - ऐसे-२ मन्त्रों द्वारा गूढ़ रहस्य प्रकाशित किया जाता है, किन्तु इन पर अधिक यदि टीका-टिप्पणी की जाय, तो ग्रन्थ का बहुत विस्तार हो जायेगा और पाठक पढ़ते-२ थक जाएँगें, अतः यहाँ सब विषय संक्षिप्तरूप से निरूपित होता है। धीति=धी=विज्ञान। ईश्वरीय विज्ञान किस प्रकार सृष्टि में विकाशित हो रहा है, इसको बाह्यरूप से मौनव्रतावलम्बी मुनिगण ही जानते हैं। इस ओर जो जितने लगते हैं, वे उतना जानते हैं। अद्यतनकाल में कैसे-२ नवीन अद्भुत कलाकौशल आविष्कृत हुए हैं, वे इन ही प्राकृत नियमों के अध्ययन से निकले हैं और विद्वानों की इसमें एक दृढ़तर सम्मति है कि ऐसी-२ सहस्रों बातें अभी प्रकृति में गुप्त रीति से लीन हैं, जिनका पता हमको अभी नहीं लगा है। भविष्यत् में वे क्रमशः विकाशित होते जाएँगें। अतः हे मनुष्यों ! इन सृष्टिविज्ञानों का अध्ययन कीजिये, इति ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ऋत्वियावती) प्रत्येक ऋतु में होनेवाले यज्ञों में होनेवाली (नवीयसी) नूतन (सपर्यन्ती) आपकी अर्चना में नियुक्त (पुरुप्रिया) अत्यन्त प्रसन्नता उत्पन्न करनेवाली (इयम्, ते, धीतिः) यह आपकी स्तुति (एति) आपको प्राप्त हो रही है और वह (मिमीते, इत्) आपका प्रजाओं में प्रकाश करती है ॥१०॥
Connotation: - हे सर्वोपरि तथा सर्वस्वामी परमेश्वर ! हम लोग ऋतु-२ में यज्ञों द्वारा आपकी स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना करते हुए सम्पूर्ण प्रजाओं में आपका यश तथा ऐश्वर्य्य प्रकाशित करते हैं। आप यज्ञरूप, तथा यज्ञ का विस्तार करनेवाले हैं। हे प्रभो ! हमें सब दुःखों से दूर रखकर शक्ति प्रदान करो, कि हम लोग नित्य-नैमित्तिक यज्ञों द्वारा आपके यजन करने में प्रवृत्त रहें ॥१०॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

ईश्वरनिर्माणमहत्त्वं दर्शयति।

Word-Meaning: - हे इन्द्र ! ते=तव। इयम्=पुरो दृश्यमाना। धीतिः=संसारसृष्टिजन्यविज्ञानम्। नवीयसी=अतिदिनमतिशयिता नवा नवा। एति=प्राप्नोति। कीदृशी धीतिः=ऋत्वियावती=ऋतौ वसन्तादिकाले दृश्यमानमृत्वियं तद्वती। पुनः। सपर्यन्ती। पुनः। पुरुप्रिया=सर्वप्रिया। ईदृशी ते धीतिः। मिमीते इत्=मिमीते एव नवं नवं वस्तु सदा निर्मात्येव ॥१०॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (ऋत्वियावती) आर्तवयज्ञसहिता (नवीयसी) नूतना (सपर्यन्ती) त्वामर्चन्ती (पुरुप्रिया) अतिप्रसादिका (इयम्, ते, धीतिः) इयं तव स्तुतिः (एति) त्वां गच्छति सा च (मिमीते, इत्) त्वां साधयति हि ॥१०॥