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यद्वा॑ य॒ज्ञं मन॑वे सम्मिमि॒क्षथु॑रे॒वेत्का॒ण्वस्य॑ बोधतम् । बृह॒स्पतिं॒ विश्वा॑न्दे॒वाँ अ॒हं हु॑व॒ इन्द्रा॒विष्णू॑ अ॒श्विना॑वाशु॒हेष॑सा ॥

English Transliteration

yad vā yajñam manave sammimikṣathur evet kāṇvasya bodhatam | bṛhaspatiṁ viśvān devām̐ ahaṁ huva indrāviṣṇū aśvināv āśuheṣasā ||

Pad Path

यत् । वा॒ । य॒ज्ञम् । मन॑वे । स॒म्ऽमि॒मि॒क्षथुः॑ । ए॒व । इत् । का॒ण्वस्य॑ । बो॒ध॒त॒म् । बृह॒स्पति॑म् । विश्वा॑न् । दे॒वान् । अ॒हम् । हु॒वे॒ । इन्द्रा॒विष्णू॒ इति॑ । अ॒श्विनौ॑ । आ॒शु॒ऽहेष॑सा ॥ ८.१०.२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:10» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:8» Varga:34» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:2» Mantra:2


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SHIV SHANKAR SHARMA

राजा और प्रजाओं का कर्त्तव्य कहते हैं।

Word-Meaning: - (अश्विनौ) हे पुण्यकृत राजा और अमात्यादिवर्ग ! आप दोनों (यद्वा) जिस प्रकार (मनवे) मननकर्ता योगीजन के (यज्ञम्) शुभकर्म की (संमिमिक्षथुः) अच्छे प्रकार रक्षा करते हैं (एव+इत्) उसी प्रकार (काण्वस्य) अन्य तत्त्वविद् विद्वान् के भी शुभकर्म को (बोधतम्) स्मरण रखिये। हे राजन् ! आज (अहम्) मैं (बृहस्पतिम्) शास्त्रों के महास्वामी महाशास्त्री को और (विश्वान्+देवान्) सम्पूर्ण व्यवहारकुशल पुरुषों को तथा (आशुहेषसा) शीघ्र स्तूयमान (इन्द्राविष्णू) सेनानायक और राजदूत को अपने यज्ञ में (हुवे) बुलाता हूँ। अतः हे राजन् और अमात्यादिवर्ग आप दोनों यहाँ अवश्य-अवश्य आवें ॥२॥
Connotation: - मनु=मननकर्ता और कण्व=ग्रन्थकर्त्ता, ये दोनों सदा सर्वकार्य्यसिद्धार्थ रक्षणीय हैं। यज्ञ में जैसे राजा, राज्ञी और अमात्यादि बुलाए जाते हैं, वैसे ही अन्य कर्मचारी व्यवहारज्ञ और कार्यकुशल देशजन भी निमन्त्रणयोग्य हैं ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे व्यापकशक्तिवाले ! (यद्वा) जिस प्रकार (मनवे) ज्ञानी जनों के (यज्ञम्) यज्ञ को (संमिमिक्षथुः) स्नेह से संसिक्त करते हैं (एवेत्) इसी प्रकार (काण्वस्य) विद्वत्पुत्रों के यज्ञ को (बोधतम्) जानें। (बृहस्पतिम्) बृहत् विद्वान् को (विश्वान्, देवान्) सब देवों को (इन्द्राविष्णू) परमैश्वर्यवाले तथा व्यापक को (आशुहेषसा, अश्विनौ) शीघ्रगामी अश्ववाले सेनापति और सभाध्यक्ष को (अहम्, हुवे) मैं आह्वान करता हूँ ॥२॥
Connotation: - हे सर्वत्र प्रसिद्ध, हे सब विद्वानों की कामनाओं को पूर्ण करनेवाले सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष ! जिस प्रकार आप ज्ञानी जनों के यज्ञ को प्राप्त होकर उनकी कामनाओं को पूर्ण करते हैं, इसी प्रकार आप हम विद्वत्पुत्रों के यज्ञ को प्राप्त होकर हमारे यज्ञ की त्रुटियों को पूर्ण करनेवाले हों ॥२॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

राजप्रजाकर्त्तव्यमाह।

Word-Meaning: - हे अश्विनौ=राजानौ। युवाम्। यद्वा। येन प्रकारेण। मनवे=मनोः मननकर्त्तुर्योगिनः। यज्ञम्=शुभकर्म। संमिमिक्षथुः=सम्यग् रक्षथः। एवेत्=एवमेव। काण्वस्य=तत्त्वविदो विदुषोऽपि। यज्ञम्। बोधतम्=जानीतम्। हे अश्विना। अद्याहम्। बृहस्पतिम्=बृहतां शास्त्राणां पतिं स्वामिनम्=महाशास्त्रिणम्। पुनः। विश्वान्=सर्वान् देवान्=व्यवहारज्ञान् पुरुषान्। अपि च। आशुहेषसा=हेषृ शब्दे। आशु=शीघ्रम्। हेषसौ=शब्द्यमानौ=तूयमानौ। इन्द्राविष्णू=इन्द्रः=सेनानायकः। विष्णुः=निपुणतरो राजदूतः। यो गुप्तमन्त्रविज्ञानाय सर्वत्र प्रविशति स विष्णुः। इन्द्रश्च विष्णुश्चेति इन्द्राविष्णू। हुवे=स्वयज्ञे निमन्त्रयामि= आह्वयामि। अतो हे अश्विनौ युवामवश्यमागच्छतम् ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे अश्विनौ ! (यद्वा) यथा वा (मनवे) ज्ञानिने जनाय (यज्ञम्, संमिमिक्षथुः) स्नेहेन संसिक्तवन्तौ (एवेत्) एवमेव (काण्वस्य) कण्वपुत्रस्य मम (बोधतम्) जानीतम् (बृहस्पतिम्) विद्वत्तमम् (विश्वान्, देवान्) सर्वान् देवान् (इन्द्राविष्णू) परमैश्वर्यवन्तम् स्वबलेन सर्वत्र व्यापकं च (आशुहेषसा) शीघ्रगाम्यश्वौ (अश्विनौ) सेनापतिसभाध्यक्षौ च (अहम्, हुवे) अहमाह्वयामि ॥२॥