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य एको॒ अस्ति॑ दं॒सना॑ म॒हाँ उ॒ग्रो अ॒भि व्र॒तैः । गम॒त्स शि॒प्री न स यो॑ष॒दा ग॑म॒द्धवं॒ न परि॑ वर्जति ॥

English Transliteration

ya eko asti daṁsanā mahām̐ ugro abhi vrataiḥ | gamat sa śiprī na sa yoṣad ā gamad dhavaṁ na pari varjati ||

Pad Path

यः । एकः॑ । अस्ति॑ । दं॒सना॑ । म॒हाम् । उ॒ग्रः । अ॒भि । व्र॒तैः । गम॑त् । सः । शि॒प्री । न । सः । यो॒ष॒त् । आ । ग॒म॒त् । हव॑म् । न । परि॑ । व॒र्ज॒ति॒ ॥ ८.१.२७

Rigveda » Mandal:8» Sukta:1» Mantra:27 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:15» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:27


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SHIV SHANKAR SHARMA

इससे इन्द्र के विशेषण कहे जाते हैं।

Word-Meaning: - (यः+एकः+अस्ति) जो इन्द्र एक है। जो (दंसना) सृष्टि, स्थिति, पालनरूप कर्मों से (महान्) महान् है और (अभि) चारों दिशाओं में (व्रतैः) स्वकीय अविचलित नियमों से (उग्रः) भयङ्कर है (सः) वह परमात्मा (गमत्) मुझको प्राप्त होवे (सः) वह (न) नहीं (योषत्) मुझसे पृथक् होवे। वह सदा (आगमत्) मेरे निकट आवे। (हवम्) मेरे निमन्त्रण का (न+परि+वर्जति) त्याग न करे। क्योंकि वह (शिप्री) शिष्ट जनों को प्यार करनेवाला है ॥२७॥
Connotation: - जगत्कर्ता पाता और संहर्ता कोई एक ही देव है, यद्यपि यह सर्वसिद्धान्त है, तथापि इतरसम्प्रदायाचार्य्य उस देव के दूत, सेवक, पुत्र और स्त्री प्रभृति भी हैं, ऐसा मानते हैं। तब वह एक है, यह कैसे बन सकता है। इस प्रकार हम सब ही एक एक ही हैं, किन्तु वैदिक देव ऐसा नहीं। वह महान् अद्वितीय है। उसने जिन नियमों को इस जगत् में स्थापित किया है, उनको दूर कोई नहीं कर सकते। अतः हे मनुष्यो ! उसीका गान करो, वह कृपाधाम तुम्हारे शुभकर्मों को देखेगा और सफल करेगा। उस एक को छोड़ अन्य देवों को न पूजो ॥२७॥
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ARYAMUNI

अब परमात्मप्राप्ति के लिये प्रार्थना कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (यः) जो परमात्मा (एकः) अद्वितीय (दंसना) कर्म से (महान्) अधिक है (उग्रः) उग्र बलवाला (व्रतैः) अपने विलक्षण कर्मों से (अभि, अस्ति) सब कर्मकर्ताओं को तिरस्कृत करता है (सः, शिप्री) वह सुखद परमात्मा (गमत्) मुझे प्राप्त हो और (सः) वह (न, योषत्) वियुक्त न हो (हवं) मेरे स्तोत्र को (आगमत्) अभिमुख होकर प्राप्त करे (न, परिवर्जति) परिवर्जन न करे ॥२७॥
Connotation: - अद्वितीय, बलवान् तथा सबको सुखप्रद परमात्मा, जो कठिन से कठिन विपत्तियों में भी अपने उपासक का सहाय करता है, वह हमको प्राप्त होकर कभी भी वियुक्त न हो और सब मनुष्यों को उचित है कि प्रत्येक कार्य्य के प्रारम्भ में परमात्मा की स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना करें, ताकि सब कामों में सफलता प्राप्त हो ॥२७॥
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SHIV SHANKAR SHARMA

अनया इन्द्रं विशिनष्टि।

Word-Meaning: - य इन्द्रः। एकः=एक एव केवलोऽसहाय एवास्ति। पुनः। दंसना=दंसनैः कर्मभिर्महान् अस्ति। पुनः। अभि=अभितः, परितः=सर्वत्र। व्रतैः=स्वनियमैः। उग्रः=भयङ्करोऽस्ति। ईदृक् स परमात्मा। गमत्=गच्छतु मां प्राप्नोतु सर्वत्र। स न योषत्=स नास्मत् पृथक् भवतु। स आगमत्=आगच्छतु=अवश्यमेव सोऽत्रागच्छतु। द्विरुक्तिरतिशयार्थद्योतिका। हवमस्माकमाह्वानं स्तुतिम्। न परिवर्जति=न परिवर्जतु। सर्वदाऽस्मान् अस्मदीयं स्तोत्रञ्च प्राप्नोत्विति यावत्। यतः स शिप्री=शिष्टान् प्रीणयति=अनुगृह्णातीति शिप्री ॥२७॥
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ARYAMUNI

अथ परमात्मप्राप्तये प्रार्थना वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (यः) यः परमात्मा (एकः) अद्वितीयः (दंसना) कर्मणा (महान्) अधिकः (उग्रः) उग्रबलः (व्रतैः) स्वकर्मभिः (अभि, अस्ति) सर्वानभि भवति (सः, शिप्री) सुखप्रदः स परमात्मा (गमत्) मा गच्छेत् (सः) स च (न, योषत्) न वियुज्येत (हवं) मम स्तोत्रं (आ, गमत्) अभ्यागच्छतु (न, परि, वर्जति) न जहातु ॥२७॥