Go To Mantra

शेवा॑रे॒ वार्या॑ पु॒रु दे॒वो मर्ता॑य दा॒शुषे॑ । स सु॑न्व॒ते च॑ स्तुव॒ते च॑ रासते वि॒श्वगू॑र्तो अरिष्टु॒तः ॥

English Transliteration

śevāre vāryā puru devo martāya dāśuṣe | sa sunvate ca stuvate ca rāsate viśvagūrto ariṣṭutaḥ ||

Pad Path

शेवा॑रे । वार्या॑ । पु॒रु । दे॒वः । मर्ता॑य । दा॒शुषे॑ । सः । सु॒न्व॒ते । च॒ । स्तु॒व॒ते । च॒ । रा॒स॒ते॒ । वि॒श्वऽगू॑र्तः । अ॒रि॒ऽस्तु॒तः ॥ ८.१.२२

Rigveda » Mandal:8» Sukta:1» Mantra:22 | Ashtak:5» Adhyay:7» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:8» Anuvak:1» Mantra:22


Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

कर्मों की अपेक्षा से वही परमात्मा सबको यथायोग्य फल देता है, इससे यह शिक्षा देते हैं।

Word-Meaning: - (देवः) वह देव इन्द्र (शेवा१रे) सुखनिमित्त शुभकर्मों के फलोन्मुख होने पर (दाशुषे) दान देनेवाले और कर्म करनेवाले (मर्ताय) मनुष्य को (पुरु) बहुत (वार्य्या) वरणीय=कमनीय=प्रशंसनीय धनों को (रासते) देता है (च) और (सः) वह देव (सुन्वते) जगद्धित के लिये यज्ञ करते हुए भक्तजनों को (च) और (स्तुवते) हम पापी कुकर्मी न हो जायँ, अतः सर्वदा परमात्मा से प्रार्थना करते हुए ज्ञानीजन को रमणीय धन देता है। जो इन्द्र (विश्वगूर्त्तः) सबका गुरु या सर्व कार्य में उद्यत रहता है। और जो (अरिष्टु२तः) ध्यान द्वारा मन को शुभकर्मों की ओर लगानेवाले योगियों से भी प्रार्थित होता है ॥२२॥
Connotation: - परमात्मा के दान प्रत्यक्ष हैं, उन्हें अल्पज्ञ मनुष्य नहीं देखते हैं। जिन अपूर्व वस्तुओं का भोग सम्राट् करता है, वे तुमको भी दी गई हैं, यह विचारो। यह वायु, यह नदीजल, यह मेघों की मनोहारिणी शोभा, ये कुसुमोद्यान, ये आराम, इस प्रकार की कितनी वस्तु तुम्हारे प्रमोद के लिये विद्यमान हैं, उन्हें सेवो। सुखी होवोगे ॥२२॥
Footnote: १−अर्−ऋ धातु से बनता है। मर्त=लोक में मर्त्य शब्द का प्रयोग होता है।२−अरिष्टुत−लोक में अरि शब्द सदा शत्रुवाची रहता है, परन्तु वेद में यह शब्द अनेकार्थ और विशेषणरूप में आता है ॥२२॥
Reads times

ARYAMUNI

अब परोपकारार्थ प्रार्थना करनेवाले को फल कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (शेवारे) सुखप्रद यज्ञ में (देवः) दिव्यस्वरूप (विश्वगूर्तः) अखिल कार्यों में प्रवृत्त होता हुआ (सः) वह परमात्मा (अरिस्तुतः) जब उभयपक्षी पुरुषों से स्तुति किया जाता है, तो (दाशुषे, मर्ताय) जो उन दोनों में उपकारशील है, उसको (च) और (सुन्वते, च, स्तुवते) तत्सम्बन्धी यज्ञ करनेवाले स्तोता को (पुरु, वार्या) अनेक वरणीय पदार्थ (रासते) देता है ॥२२॥
Connotation: - इस मन्त्र का भाव यह है कि परमात्मा के उपासक दो प्रकार के होते हैं, एक स्वार्थपरायण होकर उपासना करनेवाले और दूसरे परार्थपरायण होकर उपासना करते हैं, इन दोनों प्रकार के उपासकों में से परमात्मा न्यायकारी तथा परोपकारार्थ प्रार्थना-उपासना करनेवाले को अवश्य फल देते हैं, इसलिये प्रत्येक पुरुष को परोपकारदृष्टि से परमात्मोपासन में प्रवृत्त रहना चाहिये ॥२२॥
Reads times

SHIV SHANKAR SHARMA

कर्माण्यपेक्ष्य स हि परमात्मा सर्वेषां फलदातास्तीति शिक्षते।

Word-Meaning: - देवः=इन्द्रः। शेवारे=शेवं सुखं तस्य। अरे=गमके सुखनिमित्ते शुभकर्मणि उपस्थिते सति। दाशुषे=दत्तवते कृतभूरिदानाय कर्माणि कुर्वते च। मर्ताय=मर्त्याय=मनुष्याय। पुरु=पुरूणि=बहूनि। वार्या=वार्य्याणि कमनीयानि धनानि। रासते=ददाति। च=पुनः। सुन्वते=जगद्धिताय यागं कुर्वते। च=पुनः। स्तुवते=मा वयं पापिनोऽभूमेति परमात्मानं सदा प्रार्थयते जनाय। धनानि रासते=ददाति। कीदृशः सः। विश्वगूर्त्तः=विश्वेषां सर्वेषां गुरुः सर्वेषु कार्य्येषु उद्यतो वा। पुनः। अरिष्टुतः=अरिभिर्मनःप्रेरयितृभिर्योगिभिरपि। स्तुतः=प्रार्थितः ॥२२॥
Reads times

ARYAMUNI

अथ परार्थं प्रार्थयितुः फलं कथ्यते।

Word-Meaning: - (शेवारे) सुखप्रदे यज्ञे (देवः) दिव्यः (विश्वगूर्तः) विश्वेषु कार्येषु प्रवृत्तः (सः) स परमात्मा (अरिस्तुतः) प्रत्येकाभ्यां स्तुतः सन् यस्तत्र (दाशुषे, मर्ताय) उपकारिजनस्तस्मै (सुन्वते, च, स्तुवते, च) यज्ञं स्तुतिं च कुर्वते (पुरु, वार्या) बहूनि याचनीयानि द्रव्याणि (रासते) ददाति ॥२२॥