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वष॑ट् ते विष्णवा॒स आ कृ॑णोमि॒ तन्मे॑ जुषस्व शिपिविष्ट ह॒व्यम् । वर्ध॑न्तु त्वा सुष्टु॒तयो॒ गिरो॑ मे यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥

English Transliteration

vaṣaṭ te viṣṇav āsa ā kṛṇomi tan me juṣasva śipiviṣṭa havyam | vardhantu tvā suṣṭutayo giro me yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

वष॑ट् । ते॒ । वि॒ष्णो॒ इति॑ । आ॒सः । आ । कृ॒णो॒मि॒ । तत् । मे॒ । जु॒ष॒स्व॒ । शि॒पि॒ऽवि॒ष्ट॒ । ह॒व्यम् । वर्ध॑न्तु । त्वा॒ । सु॒ऽस्तु॒तयः॑ । गिरः॑ । मे॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥ ७.९९.७

Rigveda » Mandal:7» Sukta:99» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:24» Mantra:7 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:7


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शिपिविष्ट) हे तेजोमय परमात्मन् ! आप (हव्यं) हमारी प्रार्थनाओं को (जुषस्व) स्वीकार करें जो (वषट्) बड़ी नम्रतापूर्वक की गई हैं, (विष्णो) हे व्यापक परमात्मन् ! (ते) तुम्हारे (आस) समक्ष प्रार्थनाएँ (आ, कृणोमि) हैं और (मे) मेरी (गिरः) ये वाणियें (सुष्टुतयः) जिनमें भले प्रकार से आपका वर्णन किया गया है, (त्वां) आपके यश को (वर्धन्तु) बढ़ाएँ और (यूयं) आप (सदा) सदैव (स्वस्तिभिः) मङ्गलकार्यों से (पात) हमारी रक्षा करें ॥७॥
Connotation: - शिपिनाम यहाँ तेजोरूप किरणों का है “शिपयो रश्मयः” ॥ निरु. ५।८॥ अर्थात् ज्योतिःस्वरूप परमात्मा हमारी प्रार्थनाओं को स्वीकार करे और हमको सदैव उन्नति के मार्ग में ले जाये। यहाँ पहले (त्वां) एकवचन आकर भी (यूयं) फिर आदरार्थ बहुवचन है ॥७॥ यह ९९वाँ सूक्त और २४वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (शिपिविष्ट) हे तेजोमय परमात्मन् ! (हव्यम्) मम प्रार्थनाः (जुषस्व) स्वीकुरु या (वषट्) नम्रतया कृताः (विष्णो) हे विभो ! (ते) तव (आस) समक्षं ताः प्रार्थनाः (आ, कृणोमि) करोमि तथा (मे) मम (गिरः) स्तुतिवाचः (सुष्टुतयः) सुयशसः (त्वाम्) तव यशः (वर्धन्तु) वर्धयन्तु (यूयम्) भवान् (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाग्भिः (सदा) शश्वत् (नः) अस्मान् (पात) रक्षतु ॥७॥ इति नवनवतितमं सूक्तं चतुर्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥