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बृह॑स्पते यु॒वमिन्द्र॑श्च॒ वस्वो॑ दि॒व्यस्ये॑शाथे उ॒त पार्थि॑वस्य । ध॒त्तं र॒यिं स्तु॑व॒ते की॒रये॑ चिद्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥

English Transliteration

bṛhaspate yuvam indraś ca vasvo divyasyeśāthe uta pārthivasya | dhattaṁ rayiṁ stuvate kīraye cid yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

बृह॑स्पते । यु॒वम् । इन्द्रः॑ । च॒ । वस्वः॑ । दि॒व्यस्य॑ । ई॒शा॒थे॒ इति॑ । उ॒त । पार्थि॑वस्य । ध॒त्तम् । र॒यिम् । स्तु॒व॒ते । की॒रये॑ । चि॒त् । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥ ७.९८.७

Rigveda » Mandal:7» Sukta:98» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:23» Mantra:7 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:7


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (बृहस्पते) हे सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामिन् ! (च) और (इन्द्र) हे परमैश्वर्ययुक्त परमात्मन् ! (युवम्) आप (दिव्यस्य, वस्वः) द्युलोक के ऐश्वर्य के (उत, पार्थिवस्य) और पृथिवी के ऐश्वर्य के (ईशाथे) ईश्वर हो। हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि (स्तुवते, कीरये) अपने भक्त के लिये (रयिम्) धन को (धत्तम्) देवें (चित्) और (यूयं) आप (स्वस्तिभिः) मङ्गलवाणियों से (सदा) सर्वदा (नः) हमारी (पात) रक्षा करें ॥७॥
Connotation: - यहाँ परमात्मा में जो द्विवचन दिया है, वह इन्द्र और बृहस्पति के भिन्न-भिन्न होने के अभिप्राय से नहीं, किन्तु उत्पत्ति और स्थिति इन दो शक्तियों के अभिप्राय से अर्थात् स्वामित्व और प्रकाशकत्व इन दो शक्तियों के अभिप्राय से है, व्यक्तिभेद के अभिप्राय से नहीं। इसी अभिप्राय से आगे जाकर ‘यूयम्’ यह बहुवचन दिया। तात्पर्य्य यह है कि एक ही परमात्मा को यहाँ बृहस्पति और इन्द्र इन  नामों से गुणभेद से वर्णन किया, जैसा कि एक ही ब्रह्म का “सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म” तै० २।१। यहाँ सत्यादि नामों से एक ही वस्तु का ग्रहण है, एवं यहाँ भी भिन्न-भिन्न नामों से एक ही ब्रह्म का ग्रहण हैं, दो का नहीं ॥७॥ यह ९८वाँ सूक्त और २३वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (बृहस्पते) हे सर्वाधिपते ! (च, इन्द्रः) ऐश्वर्यवाँश्च ! (युवम्) त्वं (दिव्यस्य, वस्वः) द्युलोकगतैश्वर्य्यस्य (उत, पार्थिवस्य) पृथिवीगतस्य च (ईशाथे) ईश्वरोऽसि (स्तुवते, कीरये) व्ययार्थं प्रार्थयमानाय (रयिम्) धनं (धत्तम्) देहि (चित्) तथा च (यूयम्) भवान् (स्वस्तिभिः) मङ्गलवाग्भिः (सदा) शश्वत् (नः) अस्मान् (पात) रक्षतु ॥७॥ इत्यष्टनवतितमं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥