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यद्द॑धि॒षे प्र॒दिवि॒ चार्वन्नं॑ दि॒वेदि॑वे पी॒तिमिद॑स्य वक्षि । उ॒त हृ॒दोत मन॑सा जुषा॒ण उ॒शन्नि॑न्द्र॒ प्रस्थि॑तान्पाहि॒ सोमा॑न् ॥

English Transliteration

yad dadhiṣe pradivi cārv annaṁ dive-dive pītim id asya vakṣi | uta hṛdota manasā juṣāṇa uśann indra prasthitān pāhi somān ||

Pad Path

यत् । द॒धि॒षे । प्र॒ऽदिवि॑ । चारु॑ । अन्न॑म् । दि॒वेऽदि॑वे । पी॒तिम् । इत् । अ॒स्य॒ । व॒क्षि॒ । उ॒त । हृ॒दा । उ॒त । मन॑सा । जु॒षा॒णः । उ॒शन् । इ॒न्द्र॒ । प्रऽस्थि॑तान् । पा॒हि॒ । सोमा॑न् ॥ ७.९८.२

Rigveda » Mandal:7» Sukta:98» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:23» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे विद्वन् ! (यत्) जो तुम (दिवे, दिवे) प्रतिदिन (चारु, अन्नम्) श्रेष्ठ अन्न को धारण करते हो और (प्रदिवि) गत दिनों में भी तुमने श्रेष्ठ अन्न को ही धारण किया और (अस्य) सौम्य स्वभाव बनानेवाले सोम द्रव्य के (पीतिम्, इत्) पान को ही (वक्षि) चाहते हो (उत) और (हृदा) हृदय से (उत) और (मनसा) मन से (जुषाणः) परमात्मा का सेवन करते हुए (उशन्) सबकी भलाई की इच्छा करते हुए तुम (प्रस्थितान्, पाहि, सोमान्) इन उपस्थित सोमपा लोगों को अपने उपदेशों द्वारा पवित्र करो ॥२॥
Connotation: - केवल सोम द्रव्य के पीने से ही शील उत्तम स्वभाव नहीं बन सकता, इसलिये यह कथन किया है कि हे विद्वन् ! आप सौम्य स्वभाव का उपदेश करके लोगों में शान्ति फैलावें ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे विद्वन् ! (यत्) यतस्त्वं (दिवे दिवे) प्रतिदिनं (चारु, अन्नम्) शोभनमन्नं दधासि (प्रदिवि) गतदिनेष्वपि श्रेष्ठमेवाधाः (अस्य) सोमस्य (पीतिम् इत्) पानमेव (वक्षि) कामयसे (उत) तथा (हृदा, उत मनसा) हृदयेन मनसा च (जुषाणः) परमात्मानं सेवमानः (उशन्) सर्वजनहितमिच्छन् (प्रस्थितान्, सोमान् पाहि) उपस्थितानिमान् सोमपः रक्ष ॥२॥