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तमा नो॑ अ॒र्कम॒मृता॑य॒ जुष्ट॑मि॒मे धा॑सुर॒मृता॑सः पुरा॒जाः । शुचि॑क्रन्दं यज॒तं प॒स्त्या॑नां॒ बृह॒स्पति॑मन॒र्वाणं॑ हुवेम ॥

English Transliteration

tam ā no arkam amṛtāya juṣṭam ime dhāsur amṛtāsaḥ purājāḥ | śucikrandaṁ yajatam pastyānām bṛhaspatim anarvāṇaṁ huvema ||

Pad Path

तम् । आ । नः॒ । अ॒र्कम् । अ॒मृता॑य । जुष्ट॑म् । इ॒मे । धा॒सुः॒ । अ॒मृता॑सः । पु॒रा॒ऽजाः । शुचि॑ऽक्रन्दम् । य॒ज॒तम् । प॒स्त्या॑नाम् । बृह॒स्पति॑म् । अ॒न॒र्वाण॑म् । हु॒वे॒म॒ ॥ ७.९७.५

Rigveda » Mandal:7» Sukta:97» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:5


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (बृहस्पतिम्) सबके स्वामी (अनर्वाणम्) जो इन्द्रिय-अगोचर है, (तं हुवेम) उसको हम ज्ञान द्वारा प्राप्त हों। (शुचिक्रन्दम्) जिसके पवित्र स्तोत्र   हैं, (अर्कम्) जो स्वतःप्रकाश है, (यजतम्) जो यजनार्ह है, (अमृताय, जुष्टम्) जो अमृतमय है, जिसको (अमृतासः) मुक्ति सुख के भजनेवाले (पुराजाः) प्राचीन (इमे) इन देवों ने (पस्त्यानाम्, नः) गृहस्थों हम लोगों को (आधासुः) धारण कराया है ॥५॥
Connotation: - जो परमात्मा स्वतःप्रकाश और जन्ममरणादि धर्मरहित है अर्थात् नित्य शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव है, उसको हम अपने शुद्ध अन्तःकरण में धारण करें। तात्पर्य यह है कि जब मन मल-विक्षेपादि दोषों से रहित हो जाता है, तब उसे ब्रह्म की अवगति अर्थात् ब्रह्मप्राप्ति होती है और ब्रह्मप्राप्ति के अर्थ यहाँ ज्ञानद्वारा प्राप्ति के है, देशान्तर प्राप्ति के नहीं। इस बात को भलीभाँति निम्नलिखित मन्त्र में वर्णन किया गया है ॥५॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (बृहस्पतिम्) विश्वेश्वरं (अनर्वाणम्) इन्द्रियगोचरं (तम्, हुवेम) तं ज्ञानेन प्राप्नुयाम (शुचिक्रन्दम्) शुद्धस्तोत्रं (अर्कम्) स्वप्रकाशं (यजतम्) यष्टव्यम् (अमृताय, जुष्टम्) अमृताय हेतवे सेवितम्, यं (अमृतासः) मुक्तिभाजः   (पुराजाः) प्राचीनाः (इमे) इमे देवाः (पस्त्यानाम्, नः) गृहस्थेषु अस्मासु (आधासुः) धारितवन्तः ॥५॥