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आ दैव्या॑ वृणीम॒हेऽवां॑सि॒ बृह॒स्पति॑र्नो मह॒ आ स॑खायः । यथा॒ भवे॑म मी॒ळ्हुषे॒ अना॑गा॒ यो नो॑ दा॒ता प॑रा॒वत॑: पि॒तेव॑ ॥

English Transliteration

ā daivyā vṛṇīmahe vāṁsi bṛhaspatir no maha ā sakhāyaḥ | yathā bhavema mīḻhuṣe anāgā yo no dātā parāvataḥ piteva ||

Pad Path

आ । दैव्या॑ । वृ॒णी॒म॒हे॒ । अवां॑सि । बृह॒स्पतिः॑ । नः॒ । म॒हे॒ । आ । स॒खा॒यः॒ । यथा॑ । भवे॑म । मी॒ळ्हुषे॑ । अना॑गाः । यः । नः॒ । दा॒ता । प॒रा॒ऽवतः॑ । पि॒ताऽइ॑व ॥ ७.९७.२

Rigveda » Mandal:7» Sukta:97» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:21» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सखायः) हे मित्र लोगों ! (बृहस्पतिः) “बृहतां पतिः बृहस्पतिः” “ब्रह्म वै बृहस्पतिः” शतपथ, काण्ड ९, प्रपा० ३। ब्रा० २। क० १८ ॥ यहाँ बृहस्पति नाम ‘ब्रह्म’ का है, (नः) वह परमात्मा हम लोगों की (दैव्या, अवांसि) रक्षा करे, हम लोग अपने यज्ञों में (आवृणीमहे) वरण करें अर्थात् उसको स्वामीरूप से स्वीकार करें, (यथा) जिस प्रकार (मीळ्हुषे) विश्वम्भर के लिये (अनागाः) हम निर्दोष (भवेम) सिद्ध हों, (यः) जो परमात्मा (नः) हमको (परावतः, पितेव) शत्रुओं से बचानेवाले पिता के समान (दाता) जीवनदाता है ॥२॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम उस बृहस्पति की उपासना करो, जो तुमको सब विघ्नों से बचाता है और पिता के समान रक्षा करता है। इस मन्त्र में बृहस्पति शब्द परमात्मा के लिये आया है, जैसा कि “शन्नो मित्रः शं वरुणः शन्नो भवत्वर्यमा। शन्न इन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः” यजुः ३६।९॥ इस मन्त्र में ‘बृहस्पति’ शब्द परमात्मा के अर्थ में है ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (सखायः) हे मित्राणि ! (बृहस्पतिः) परमात्मा (नः) अस्मान् (दैव्या, अवांसि) दिव्यतया, रक्षेत् वयं च स्वयज्ञे (आवृणीमहे) तं वृणीमहि (यथा) येन विधिना (मीळ्हुषे) विश्वम्भरस्य पुरः (अनागाः) निर्दोषाः (भवेम) स्याम (यः) यः परमात्मा (नः) अस्माकं (परावतः, पितेव) शत्रोस्त्रायमाणः पितेव (दाता) जीवनदातास्ति ॥२॥