Go To Mantra

भ॒द्रमिद्भ॒द्रा कृ॑णव॒त्सर॑स्व॒त्यक॑वारी चेतति वा॒जिनी॑वती । गृ॒णा॒ना ज॑मदग्नि॒वत्स्तु॑वा॒ना च॑ वसिष्ठ॒वत् ॥

English Transliteration

bhadram id bhadrā kṛṇavat sarasvaty akavārī cetati vājinīvatī | gṛṇānā jamadagnivat stuvānā ca vasiṣṭhavat ||

Pad Path

भ॒द्रम् । इत् । भ॒द्रा । कृ॒ण॒व॒त् । सर॑स्वती । अक॑वऽअरी । चे॒त॒ति॒ । वा॒जिनी॑ऽवती । गृ॒णा॒ना । ज॒म॒द॒ग्नि॒ऽवत् । स्तु॒वा॒ना । च॒ । व॒सि॒ष्ठ॒ऽवत् ॥ ७.९६.३

Rigveda » Mandal:7» Sukta:96» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:20» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:3


Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (भद्रा) प्राप्त करने योग्य (सरस्वती) विद्या (भद्रम्, इत्) कल्याण ही (कृणवत्) करे, जो विद्या (अकवारी) कुत्सित अज्ञानादि पदार्थों की विरोधिनी (चेतति) सबको जगाती है, (वाजिनीवती) ऐश्वर्यवाली (गृणाना) अविद्यान्धकार की नाश करनेवाली और वह विद्या (जमदग्निवत्) जमदग्नि के समान (च) और (वसिष्ठवत्) सर्वोपरि विद्वान् के समान (स्तुवाना) स्तुति की हुई फलदायक होती है ॥३॥
Connotation: - सरस्वती ब्रह्मविद्या जो सब ज्ञानों का स्रोत है, वह यदि ऋषि-मुनियों के समान स्तुति की जाय, अर्थात् उनके समान यह भी ध्यान का विषय बनाई जाय, तो मनुष्य के लिये फलदायक होती है। ‘जमदग्नि’ यहाँ कोई ऋषिविशेष नहीं, किन्तु “जमन् अग्निरिव” जो जमन् प्रकाश करता हुआ अग्नि के समान देदीप्यमान हो अर्थात् तेजस्वी और ब्रह्मवर्चस्वी हो, उसको ‘जमदग्नि’ कहते हैं, एवम् ‘वसिष्ठ’ यह नाम भी वेद में गुणप्रधान है, व्यक्तिप्रधान नहीं, जैसा कि “धर्मादिकर्तव्येषु अतिशयेन वसतीति वसिष्ठः” जो धर्मादि कर्तव्यों के पालन करने में रहे अर्थात् जो अपने यम-नियमादि व्रतों को कभी भङ्ग न करे, उसका नाम यहाँ ‘वसिष्ठ’ है ॥ तात्पर्य यह है कि जो पुरुष उक्त विद्वानों के समान विद्या को पूजनार्ह और सत्कर्तव्य समझता है, वह इस संसार में कृतकार्य होता है, अन्य नहीं ॥३॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (भद्रा) प्राप्तव्या (सरस्वती) विद्या (भद्रम्, इत्) कल्याणमेव (कृणवत्) कुर्यात् (अकवारी) या कुज्ञानादेर्विरोधिनी (चेतति) सर्वं बोधयति (वाजिनीवती)   ऐश्वर्यशालिनी (गृणाना) अविद्या तमोहन्त्री (जमदग्निवत्) जमदग्निरिव (च) तथा (वसिष्ठवत्) विद्वान् इव (स्तुवाना) स्तूयमाना सती हि अभीष्टफलदा ॥३॥