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सो अ॑ग्न ए॒ना नम॑सा॒ समि॒द्धोऽच्छा॑ मि॒त्रं वरु॑ण॒मिन्द्रं॑ वोचेः । यत्सी॒माग॑श्चकृ॒मा तत्सु मृ॑ळ॒ तद॑र्य॒मादि॑तिः शिश्रथन्तु ॥

English Transliteration

so agna enā namasā samiddho cchā mitraṁ varuṇam indraṁ voceḥ | yat sīm āgaś cakṛmā tat su mṛḻa tad aryamāditiḥ śiśrathantu ||

Pad Path

सः । अ॒ग्ने॒ । ए॒ना । नम॑सा । स॒म्ऽइ॒द्धः । अच्छ॑ । मि॒त्रम् । वरु॑णम् । इन्द्र॑म् । वो॒चेः॒ । यत् । सी॒म् । आगः॑ । च॒कृ॒म । तत् । सु । मृ॒ळ॒ । तत् । अ॒र्य॒मा । अदि॑तिः । शि॒श्र॒थ॒न्तु॒ ॥ ७.९३.७

Rigveda » Mandal:7» Sukta:93» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:7


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! (सः) आप (नमसा) विनय से (समिद्धः) प्रसन्न हुए (इन्द्रं, मित्रं, वरुणं) श्रेष्ठ अध्यापक और उपदेशक को (अच्छ, वोचेः) यह श्रेष्ठ उपदेश करो कि वे लोग यजमानों से पापकर्म्मों को (शिश्रथन्तु) वियुक्त करें और (यत्) जो (सीं) कुछ हम ने (आगः) पापकर्म्म (चकृम) किये हैं, (तत्) वह (सुमृळ) दूर करें और उनकी निवृत्ति हम (अर्य्यमा) न्यायकारी और (अदितिः) अखण्डनीय परमात्मा मे न्यायपूर्वक चाहते हैं ॥७॥
Connotation: - पापों की निवृत्ति पश्चात्ताप से होती है, परमात्मा जिस पर अपनी कृपा करते हैं, वही पुरुष अपने मन से पापों की निवृत्ति के लिये प्रार्थना करता है अर्थात् मनुष्य में परमात्मा की कृपा से विनीतभाव आता है, अन्यथा नहीं। यहाँ सञ्चित और क्रियमाण कर्म्मों की निवृत्ति से तात्पर्य्य है, प्रारब्ध कर्म्मों से नहीं ॥७॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! भवान् (नमसा) विनयेन (समिद्धः) प्रसन्नः सन् (इन्द्रम्, मित्रम्, वरुणम्) अध्यापकानुपदेशकांश्च श्रेष्ठान् (अच्छ, वोचेः) इदमुपदिश यत् ते यजमानं पापकर्मणः (शिश्रथन्तु) वियोजयन्तु (यत्, सीम्) यत् किञ्चित् (आगः) पापम् (चकृम) अकृष्महि (तत्) तत् पापकर्म (सु, मृळ) अपहृत्य शुष्कयन्तु (अर्यमा) तन्निवृत्तिं च न्यायकारिणः (अदितिः) विभोश्च परमात्मनः वाञ्छामः ॥७॥