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अर्व॑न्तो॒ न श्रव॑सो॒ भिक्ष॑माणा इन्द्रवा॒यू सु॑ष्टु॒तिभि॒र्वसि॑ष्ठाः । वा॒ज॒यन्त॒: स्वव॑से हुवेम यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥

English Transliteration

arvanto na śravaso bhikṣamāṇā indravāyū suṣṭutibhir vasiṣṭhāḥ | vājayantaḥ sv avase huvema yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

अर्व॑न्तः । न । श्रव॑सः । भिक्ष॑माणाः । इ॒न्द्र॒वा॒यू इति॑ । सु॒स्तु॒तिऽभिः॑ । वसि॑ष्ठाः । वा॒ज॒ऽयन्तः॑ । सु । अव॑से । हु॒वे॒म॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥ ७.९१.७

Rigveda » Mandal:7» Sukta:91» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:13» Mantra:7 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:7


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्रवायू) हे ज्ञानयोगी और कर्मयोगी पुरुषो ! हम (अर्वन्तः) जिज्ञासुओं के (न) समान (श्रवसः) ज्ञान की (भिक्षमाणाः) भिक्षा माँगते हुए (सुस्तुतिभिः, वसिष्ठाः) आपकी स्तुतिपरायण हुए अपनी रक्षा के लिये (वाजयन्तः) आपसे बल की याचना करते हैं और (हुवेम) ह्वेञ् शब्दार्थक धातु होने से यहाँ याच्ञाविषयक शब्दार्थ है। हम यह दान माँगते हैं कि (यूयं) आप (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाचनों से (नः) हमारी (सदा) सदैव (पात) रक्षा करें ॥७॥
Connotation: - जो लोग ज्ञान और विज्ञान के भिक्षु बन कर ज्ञानी और विज्ञानी लोगों से सदैव ज्ञानयोग और कर्मयोग की भिक्षा माँगते हैं, परमात्मा उनको अभ्युदय और निःश्रेयस इन दोनों ऐश्वर्यों से परिपूर्ण करता है ॥७॥ यह ९१वाँ सूक्त और १३वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्रवायू) हे पूर्वोक्तयोगद्वयविशिष्टाः ! वयं (अर्वन्तः) जिज्ञासवः (न) इव (श्रवसः) ज्ञानं (भिक्षमाणाः) याचमानाः (सुस्तुतिभिः, वसिष्ठाः) युष्मत्स्तुतितत्पराः (स्ववसे) स्वरक्षणाय (वाजयन्तः) बलं कामयमानाः (हुवेम) शब्दयामहे याचामहे (यूयम्) यूयं सर्वे (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाग्भिः (सदा) शश्वत् (नः) अस्मान् (पात) रक्षत ॥७॥ एकनवतितमं सूक्तं त्रयोदशो वर्गश्च समाप्तः ॥