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कु॒विद॒ङ्ग नम॑सा॒ ये वृ॒धास॑: पु॒रा दे॒वा अ॑नव॒द्यास॒ आस॑न् । ते वा॒यवे॒ मन॑वे बाधि॒तायावा॑सयन्नु॒षसं॒ सूर्ये॑ण ॥

English Transliteration

kuvid aṅga namasā ye vṛdhāsaḥ purā devā anavadyāsa āsan | te vāyave manave bādhitāyāvāsayann uṣasaṁ sūryeṇa ||

Pad Path

कु॒वित् । अ॒ङ्ग । नम॑सा । ये । वृ॒धासः॑ । पु॒रा । दे॒वाः । अ॒न॒व॒द्यासः॑ । आस॑न् । ते । वा॒यवे॑ । मन॑वे । बा॒धि॒ताय॑ । अवा॑सयन् । उ॒षस॑म् । सूर्ये॑ण ॥ ७.९१.१

Rigveda » Mandal:7» Sukta:91» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:6» Mantra:1


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ARYAMUNI

अब उक्त विद्वानों से प्रकारान्तर से विद्याग्रहण करने का उपदेश कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (पुरा) पूर्वकाल में (ये) जो (देवाः) विद्वान् (वृधासः) ज्ञानवृद्ध और (अनवद्यासः) दोषरहित (आसन्) थे, वे (कुवित्) बहुत (अङ्ग) शीघ्र (नमसा) नम्रता से (वायवे) शिक्षा के (मनवे) लाभ के लिये (बाधिताः) स्वसन्तानों की रक्षा के लिये (सूर्येण) सूर्योदय के (उषसम्) उषाकाल को लक्ष्य रख कर (अवासयन्) अपने यज्ञ आदि कर्मों का प्रारम्भ करते थे ॥१॥
Connotation: - जो लोग अपने आलस्य आदि दोषरहित और ज्ञानी हैं, वे उषाकाल में उठकर अपने यज्ञादि कर्मों का प्रारम्भ करते हैं। मन्त्र में जो भूतकाल की क्रिया दी है, वह “व्यत्ययो बहुलम्” इस नियम के अनुसार वर्तमानकाल की बोधिका है, इसलिये वेदों से प्रथम किसी अन्य देव के होने की आशङ्का इससे नहीं हो सकती। अन्य युक्ति यह कि “सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत्” “देवाभागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते” इत्यादि मन्त्रों में पूर्व काल के देवों की सूचना जैसे दी गई है, इसी प्रकार उक्त मन्त्र में भी है, इसलिये कोई दोष नहीं ॥ तात्पर्य्य यह है कि वैदिक सिद्धान्त में सृष्टि प्रवाहरूप से अनादि है, इसलिये उसमें भूतकाल का वर्णन करना कोई दोष की बात नहीं ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ पूर्वोक्तविद्वद्भ्यः प्रकारान्तरेण विद्याऽऽदानमुपदिश्यते।

Word-Meaning: - (पुरा) पूर्वकाले (ये) ये (देवाः) विद्वांसः (वृधासः) ज्ञानवृद्धाः तथा (अनवद्यासः) दोषरहिताः (आसन्) अभूवन् ते (कुवित्) अति (अङ्ग) शीघ्रं (नमसा) नम्रतया (वायवे, मनवे) शिक्षाप्राप्तये (बाधिताः) स्वसन्तानरक्षणाय च (सूर्येण) सूर्योदये (उषसम्) उषःकालमभिलक्ष्य (अवासयन्) स्वयज्ञादिकं प्रारसप्सत ॥१॥