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त्वाम॑ग्ने समिधा॒नो वसि॑ष्ठो॒ जरू॑थं ह॒न्यक्षि॑ रा॒ये पुरं॑धिम्। पु॒रु॒णी॒था जा॑तवेदो जरस्व यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥६॥

English Transliteration

tvām agne samidhāno vasiṣṭho jarūthaṁ han yakṣi rāye puraṁdhim | puruṇīthā jātavedo jarasva yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। स॒म्ऽइ॒धा॒नः। वसि॑ष्ठः। जरू॑थम्। ह॒न्। यक्षि॑। रा॒ये। पुर॑म्ऽधिम्। पु॒रु॒ऽनी॒था। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। ज॒र॒स्व॒। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:9» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे विद्वान् क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (जातवेदः) विज्ञान को प्राप्त (अग्ने) अग्नि के तुल्य विद्यादि गुणों से प्रकाशित विद्वन् ! जैसे (समिधानः) सम्यक् प्रकाशमान (वसिष्ठः) अत्यन्त धनी (जरूथम्) शिथिलावस्था से युक्त जीर्ण मेघ को (हन्) हनन करता है, वैसे सुन्दर सभा के योग्य (पुरन्धिम्) बहुतों को धारण करनेवाले (त्वाम्) आप विद्वान् का (राये) धन प्राप्ति के लिये मैं (यक्षि) सङ्ग करता हूँ (यूयम्) तुम लोग (स्वस्तिभिः) सुख साधनों से (नः) हमारी (सदा) सदा (पात) रक्षा करो और (पुरुनीथा) बहुतों को प्राप्त होनेवाले धर्मयुक्त कर्मों की (जरस्व) प्रशंसा करो ॥६॥
Connotation: - जो राजा के सहित सम्य लोग, सूर्य मेघ को जैसे, वैसे अविद्या और दुष्टाचारों का नाश करते हैं, सब को धर्मयुक्त मार्ग को प्राप्त कराते, वे सब के यथावत् रक्षक होते हैं ॥६॥ इस सूक्त में अग्नि के दृष्टान्त से विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह नववाँ सूक्त और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते विद्वांसः किं कुर्य्युरित्याह ॥

Anvay:

हे जातवेदोऽग्ने ! यथा समिधानो वसिष्ठो जरूथं जीर्णे मेघं हँस्तथा सुसभ्यं पुरन्धिं त्वां रायेऽहं यक्षि यूयं स्वस्तिभिर्नः सदा पात पुरुणीथा जरस्व ॥६॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) विद्वांसम् (अग्ने) वह्निवद्विद्यादिगुणप्रकाशित (समिधानः) सम्यक् प्रकाशमानः (वसिष्ठः) अतिशयेन धनाढ्यः (जरूथम्) जरावस्थया युक्तम् (हन्) हन्ति (यक्षि) सङ्गच्छेः (राये) धनाय (पुरन्धिम्) यो बहून् दधाति तम् (पुरुणीथा) पुरुन्नयन्ति येषु तानि धर्म्यकर्माणि (जातवेदः) जातविज्ञान (जरस्व) प्रशंस (यूयम्) उपदेशकाः (पात) रक्षत (स्वस्तिभिः) सुखैः (सदा) सर्वस्मिन् काले (नः) अस्मान् ॥६॥
Connotation: - ये सराजकाः सभ्याः सूर्यो मेघमिवाऽविद्यां दुष्टाचाराँश्च घ्नन्ति सर्वान् धर्म्यमार्गं नयन्ति ते सर्वेषां यथावद्रक्षका भवन्ति ॥६॥ अत्राग्निदृष्टान्तेन विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति नवमं सूक्तं द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सूर्य जसा मेघांचा नाश करतो तसे जे राजासहित सभ्य लोक अविद्या व दुष्टाचरणाचा नाश करतात व सर्वांना धर्मयुक्त मार्ग दाखवितात ते सर्वांचे यथायोग्य रक्षक असतात. ॥ ६ ॥