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अग्ने॑ या॒हि दू॒त्यं१॒॑ मा रि॑षण्यो दे॒वाँ अच्छा॑ ब्रह्म॒कृता॑ ग॒णेन॑। सर॑स्वतीं म॒रुतो॑ अ॒श्विना॒पो यक्षि॑ दे॒वान् र॑त्न॒धेया॑य॒ विश्वा॑न् ॥५॥

English Transliteration

agne yāhi dūtyam mā riṣaṇyo devām̐ acchā brahmakṛtā gaṇena | sarasvatīm maruto aśvināpo yakṣi devān ratnadheyāya viśvān ||

Pad Path

अग्ने॑। या॒हि। दू॒त्य॑म्। मा। रि॒ष॒ण्यः॒। दे॒वाम्। अच्छ॑। ब्र॒ह्म॒ऽकृता॑। ग॒णेन॑। सर॑स्वतीम्। म॒रुतः॑। अ॒श्विना॑। अ॒पः। यक्षि॑। दे॒वान्। र॒त्न॒ऽधेया॑य। विश्वा॑न् ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:9» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:12» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन विद्वान् संगति करने योग्य होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) वह्नि के तुल्य कार्य सिद्ध करनेहारे विद्वन् ! आप (दूत्यम्) दूत के कर्म को (याहि) प्राप्त हूजिये (देवान्) विद्वानों वा शुभ गुणों को (मा) मत (रिषण्यः) नष्ट कीजिये (ब्रह्मकृता) जिससे धन वा अन्न को उत्पन्न करते (गणेन) उस सामग्री के समुदाय से (रत्नधेयाय) रत्नों का जिसमें धारण हो उसके लिये (सरस्वतीम्) विद्याशिक्षायुक्त वाणी का (मरुतः) मनुष्यों का (अश्विना) अध्यापक और उपदेशकों के (अपः) कर्मों का और (विश्वान्) सब (देवान्) विद्वानों का जिस कारण (अच्छा) अच्छे प्रकार (यक्षि) सङ्ग करते हैं, इससे सत्कार करने योग्य हैं ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् लोग अग्निरूप दूत से बहुत कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वैसे कार्य को सिद्धि करके किसी को मत मारो, पदार्थविद्या, धन वा धान्य से कोश को पूर्ण कर सब को सुखी करो ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के विद्वांसः सङ्गन्तव्याः सन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने ! त्वं दूत्यं याहि देवान् मा रिषण्यो ब्रह्मकृता गणेन रत्नधेयाय सरस्वतीं मरुतोऽश्विनाऽपो विश्वान् देवान् यतोऽच्छा यक्षि तस्मात् सत्कर्त्तव्योऽसि ॥५॥

Word-Meaning: - (अग्ने) वह्निरिव कार्य्यसाधक (याहि) (दूत्यम्) दूतस्य कर्म (मा) निषेधे (रिषण्यः) हिंस्याः (देवान्) विदुषश्शुभान् गुणान् वा (अच्छ) सम्यक्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (ब्रह्मकृता) येन ब्रह्म धनमन्नं वा करोति तेन (गणेन) समूहेन (सरस्वतीम्) विद्यासुशिक्षायुक्तां वाचम् (मरुतः) मनुष्यान् (अश्विना) अध्यापकोपदेशकौ (अपः) कर्माणि (यक्षि) सङ्गच्छसे (देवान्) विदुषः (रत्नधेयाय) रत्नानि धीयन्ते यस्मिँस्तस्मै (विश्वान्) समग्रान् ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यथाऽग्निना दूतेन विद्वांसो बहूनि कार्याणि साध्नुवन्ति तथा कार्यसिद्धिं कृत्वा कञ्चन मा हिंसत पदार्थविद्यया धनेन धान्येन वा कोशान् प्रपूर्य्य सर्वान् सुखयत ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जसे विद्वान लोक अग्निरूपी दूताकडून पुष्कळ कार्य सिद्ध करतात तसे कार्याची सिद्धी करून कुणालाही मारू नका तर पदार्थविद्या, धन किंवा धान्याच्या कोशाने पूर्ण करून सर्वांना सुखी करा. ॥ ५ ॥