Go To Mantra

य आ॒पिर्नित्यो॑ वरुण प्रि॒यः सन्त्वामागां॑सि कृ॒णव॒त्सखा॑ ते । मा त॒ एन॑स्वन्तो यक्षिन्भुजेम य॒न्धि ष्मा॒ विप्र॑: स्तुव॒ते वरू॑थम् ॥

English Transliteration

ya āpir nityo varuṇa priyaḥ san tvām āgāṁsi kṛṇavat sakhā te | mā ta enasvanto yakṣin bhujema yandhi ṣmā vipraḥ stuvate varūtham ||

Pad Path

यः । आ॒पिः । नित्यः॑ । व॒रु॒ण॒ । प्रि॒यः । सन् । त्वाम् । आगां॑सि । कृ॒णव॑त् । सखा॑ । ते॒ । मा । ते॒ । एन॑स्वन्तः । य॒क्षि॒न् । भु॒जे॒म॒ । य॒न्धि । स्म॒ । विप्रः॑ । स्तु॒व॒ते । वरू॑थम् ॥ ७.८८.६

Rigveda » Mandal:7» Sukta:88» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:10» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:6


Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वरुण) हे परमात्मन् ! (ते) तुम्हारे साथ (प्रियः, सन्) प्यार करता हुआ (यः) जो पुरुष (नित्यः) सर्वदा (ते) तुम्हारे साथ (सखा, आपिः) सखिभाव रखता हुआ (आगांसि) पाप (कृणवत्) करता है, (यक्षिन्) हे यजनीय परमात्मन् ! वह (एनस्वन्तः) पापों में (मा) मत प्रविष्ट हो, (विप्रः) हे सर्वज्ञ परमात्मन् ! (स्तुवते) स्तुति करनेवाले उस पुरुष के लिए (वरूथं) वरणीय सर्वोपरि अपने स्वरूप को (यन्धि) आप प्रकाश करें, ताकि हम लोग आपके ब्रह्मानन्द का (भुजेम) भोग करें ॥६॥
Connotation: - जो पुरुष कुछ भी परमात्मा के साथ सम्बन्ध रखता है, वह यदि स्वभाववश कभी पाप में पड़ जाता है, परमात्मा की कृपा से फिर भी उन पापों से निकल सकता है, क्योंकि परमात्मा के आराधन का बल उसे पापप्रवाह से निकाल सकता है। इसी अभिप्राय से कहा है कि परमात्मा परमात्मपरायण पुरुषों के लिए अवश्यमेव शुभस्थान देते हैं ॥६॥
Reads times

ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वरुण) परमात्मन् ! (ते) तव (प्रियः, सन्) कृतसेवो भवन् (यः) यो नरः (नित्यः) शश्वत् (ते) त्वयि (सखा, आपिः) सख्यं जनयन् (आगांसि) अपराधान् (कृणवत्) कुर्यात् (यक्षिन्) हे यजनीय परमात्मन् ! सः (एनस्वन्तः) पापेषु (मा) न लिप्येत, (विप्रः) हे सर्वज्ञ ! (स्तुवते) स्तुतिकर्त्रे (वरूथम्) वरणीयं स्वरूपं (यन्धि) भासय यतो वयं ब्रह्मानन्दं (भुजेम) भुञ्जाम ॥६॥