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उ॒वाच॑ मे॒ वरु॑णो॒ मेधि॑राय॒ त्रिः स॒प्त नामाघ्न्या॑ बिभर्ति । वि॒द्वान्प॒दस्य॒ गुह्या॒ न वो॑चद्यु॒गाय॒ विप्र॒ उप॑राय॒ शिक्ष॑न् ॥

English Transliteration

uvāca me varuṇo medhirāya triḥ sapta nāmāghnyā bibharti | vidvān padasya guhyā na vocad yugāya vipra uparāya śikṣan ||

Pad Path

उ॒वाच॑ । मे॒ । वरु॑णः । मेधि॑राय । त्रिः । स॒प्त । नाम॑ । अघ्न्या॑ । बि॒भ॒र्ति॒ । वि॒द्वान् । प॒दस्य॑ । गुह्या॑ । न । वो॒च॒त् । यु॒गाय॑ । विप्रः॑ । उप॑राय । शिक्ष॑न् ॥ ७.८७.४

Rigveda » Mandal:7» Sukta:87» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:9» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:4


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ARYAMUNI

अब परमात्मा की ओर से इक्कीस प्रकार की यज्ञीय वाणी का उपदेश कथन करते हैं।

Word-Meaning: - (वरुणः) सर्वविद्याभण्डार परमात्मा (मे) मुझे (मेधिराय) मेधावी शिष्य को (उचाव) बोला कि (त्रिः, सप्त, नाम) इक्कीस नामों को (अघ्न्या, बिभर्ति) वेदवाणी ने धारण किया है, (न) और (विद्वान्) सब विद्याओं के वेत्ता परमात्मा ने (पदस्य) मुक्तिधाम के (गुह्या) गुप्त मार्गों का उपदेश करते हुए (वोचत्) कहा कि (विप्रः, युगाय) हे मेधावी योग्य शिष्य ! मैं तुझे (उपराय) अपनी समीपता के लिए   (शिक्षन्) यह उपदेश करता हूँ ॥४॥
Connotation: - परमात्मा अपने ज्ञान के पात्र मेधावी भक्तों को अपनी भक्ति का मार्ग बतलाते हुए उपदेश करते हैं कि तुम इक्कीस नामोंवाले यज्ञ, जिनको वेदवाणी ने धारण किया है, उनका अनुष्ठान करो अर्थात् ब्रह्मयज्ञादि पाँच महायज्ञ और उपनयनादि षोडशसंस्काररूप यज्ञ, इन इक्कीस यज्ञों का करनेवाला मुक्तिधाम का अधिकारी होता और वही परमात्मा की समीपता को उपलब्ध करके सुख का अनुभव करता है। वह परमात्मा का उपदेश मनुष्यमात्र के लिए ग्राह्य है कि उक्त इक्कीस यज्ञों का अनुष्ठान करते हुए अपने जीवन को उच्च बनावें ॥४॥
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ARYAMUNI

अथ परमात्मना एकविंशतिधा वाक्यं निरूप्यते।

Word-Meaning: - (वरुणः) अखिलविद्याधिष्ठानं परमात्मा (मे) मां (मेधिराय) मेधाविनं शिष्यम् (उवाच) अब्रवीत् (त्रिः, सप्त, नाम) त्रिवारं सप्त एकविंशतिनामेत्यर्थः नामानि, (अघ्न्या, बिभर्ति) वेदवाग्धारयति (न) तथा (विद्वान्) सर्वज्ञः परमात्मा (पदस्य) मुक्तिधाम्नः (गुह्या) गुप्तमार्गानुपदिशन् (वोचत्) उक्तवान् (विप्रः, युगाय) हे मेधाविन् सदाचारवान् ! अहं त्वा (उपराय) स्वसान्निध्याय (शिक्षन्) उपदिशामि ॥४॥