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पृ॒च्छे तदेनो॑ वरुण दि॒दृक्षूपो॑ एमि चिकि॒तुषो॑ वि॒पृच्छ॑म् । स॒मा॒नमिन्मे॑ क॒वय॑श्चिदाहुर॒यं ह॒ तुभ्यं॒ वरु॑णो हृणीते ॥

English Transliteration

pṛcche tad eno varuṇa didṛkṣūpo emi cikituṣo vipṛccham | samānam in me kavayaś cid āhur ayaṁ ha tubhyaṁ varuṇo hṛṇīte ||

Pad Path

पृ॒च्छे । तत् । एनः॑ । व॒रु॒ण॒ । दि॒दृक्षु॑ । उपो॒ इति॑ । ए॒मि॒ । चि॒कि॒तुषः॑ । वि॒ऽपृच्छ॑म् । स॒मा॒नम् । इत् । मे॒ । क॒वयः॑ । चि॒त् । आ॒हुः॒ । अ॒यम् । ह॒ । तुभ्य॑म् । वरु॑णः । हृ॒णी॒ते॒ ॥ ७.८६.३

Rigveda » Mandal:7» Sukta:86» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:3


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वरुण) हे सर्वरक्षक परमात्मन् ! (तत्) वह (एनः) पाप (पृच्छे) आप से पूछता हूँ (उपो, दिदृक्षु) आपके दर्शन का अभिलाषी मैं (चिकितुषः) सर्वथा बन्धनरहित होकर (एमि) आपको प्राप्त होऊँ, (कवयः) विद्वान् पुरुष (विपृच्छं) भले प्रकार पूछने पर (समानं) आपके विषय में (मे) मुझको (चित्) निश्चयपूर्वक (आहुः) यह कहते हैं, (ह) प्रसिद्ध है कि (अयं) यह (वरुणः) सर्वशक्तिमान् परमात्मा (तुभ्यं) उपासकों को (इत्) निश्चय करके (हृणीते) पापों से उभारकर सुख की ओर ले जाना चाहता है ॥३॥
Connotation: - हे सर्वव्यापक ! मैं उन पापों को कैसे जानूँ, जिनके कारण आपके दर्शन से वञ्चित हूँ। हे सर्वपालक ! ऐसी कृपा कर कि मैं उन पापों से छूटकर आपको प्राप्त होउँ। यह प्रसिद्ध है कि वेदों के ज्ञाता विद्वान् पुरुष पूछने पर निश्चयपूर्वक यह कहते हैं कि परमात्मा सबका मङ्गल, कल्याण चाहते हैं, यदि उपासक अंशमात्र भी उनकी ओर झुके, तो वह दयालु भगवान् स्वयं उसका उद्धार करते हैं, इसलिए पुरुष को चाहिए कि वह साधनसम्पन्न होकर परमात्मा की उपासना में प्रवृत्त हो, तभी उसका उद्धार हो सकता है, अन्यथा नहीं ॥३॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (वरुणः) भोः सर्वभजनीय परमात्मन् ! (तत्) तत् (एनः) पापं (पृच्छे) भवन्तं पृच्छामि (उपो, दिदृक्षु) भवन्तं दिदृक्षुरहं (चिकितुषः) सर्वथा निर्बन्धनः (एमि) भवन्तं प्राप्नुयां (कवयः) विद्वांसः (विपृच्छम्) साधुपृष्टाः (समानम्) भवद्विषये (मे) मां (चित्) निश्चयं (आहुः) ब्रुवन्ति वक्ष्यमाणं (ह) प्रसिद्धमिदं यत् (अयम्) अयं (वरुणः) समर्थः ईश्वरः (तुभ्यम्) त्वामुपासकं (इत्) निश्चयेन (हृणीते) पापेभ्य उद्धृत्य सुखं प्रति नयति ॥३॥