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यु॒वामिद्यु॒त्सु पृत॑नासु॒ वह्न॑यो यु॒वां क्षेम॑स्य प्रस॒वे मि॒तज्ञ॑वः । ई॒शा॒ना वस्व॑ उ॒भय॑स्य का॒रव॒ इन्द्रा॑वरुणा सु॒हवा॑ हवामहे ॥

English Transliteration

yuvām id yutsu pṛtanāsu vahnayo yuvāṁ kṣemasya prasave mitajñavaḥ | īśānā vasva ubhayasya kārava indrāvaruṇā suhavā havāmahe ||

Pad Path

यु॒वाम् । इत् । यु॒त्ऽसु । पृत॑नासु । वह्न॑यः । यु॒वाम् । क्षेम॑स्य । प्र॒ऽस॒वे । मि॒तऽज्ञ॑वः । ई॒शा॒ना । वस्वः॑ । उ॒भय॑स्य । का॒रवः॑ । इन्द्रा॑वरुणा । सु॒ऽहवा॑ । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ ७.८२.४

Rigveda » Mandal:7» Sukta:82» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:6» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:4


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्रावरुणा) हे विद्वान् पुरुषो ! तुम्हें (सुहवा) प्रेमपूर्वक (हवामहे) बुलाकर उपदेश करता हूँ कि तुम लोग (कारवः) कर्मशील बनकर (उभयस्य) राजा तथा प्रजा दोनों के कल्याण में (वस्वः) प्रयत्न करो और (ईशाना) ऐश्वर्य्यसम्पन्न होकर (मितज्ञवः) व्यायामसाधित लघुशरीरवाले (क्षेमस्य, प्रसवे) सबके लिए सुख की वृद्धि करो, (युवां) आप लोगों को उचित है कि (पृतनासु) युद्धों में (वह्नयः) उत्साही होकर (युत्सु) राज्य के संगठन में (युवां) तुम्हारा (इत्) ज्ञान वृद्धि को प्राप्त हो ॥४॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे अध्यापक तथा उपदेशकों ! मैं तुम्हें बुलाकर अर्थात् ज्ञान द्वारा मेरे समीप स्थित हुए तुम्हें उपदेश करता हूँ कि तुम अनुष्ठानी बनकर राजा तथा प्रजा दोनों के हित में प्रयन्त करो, क्योंकि अनुष्ठानशील पुरुष ही उपदेशों द्वारा संसार का कल्याण कर सकता है, अन्य नहीं। हे विद्वानों ! तुम युद्धविद्या के ज्ञाता बनकर सदैव अपने ज्ञान को बढ़ाते रहो और युद्ध में उत्साहपूर्वक शत्रुओं का दमन करते हुए राज्य के संगठन में सदा प्रयत्न करते रहो ॥४॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्रावरुणा) भो विद्वांसः ! वयं युष्मान् (सुहवा) सुखेन हातव्यान् (हवामहे) आहूय उपदिशामि, यत् यूयं (कारवः) कर्मशीलाः सन्तः (उभयस्य) राज्ञः प्रजानां च कल्याणाय (वस्वः) प्रयतध्वम् (ईशाना) ऐश्वर्यसम्पन्ना भूत्वा (मितज्ञवः) सङ्कुचितजानुकाः =व्यायामादिप्रयत्नसम्पादितलघुशरीराः सन्तः (क्षेमस्य, प्रसवे) क्षेमोत्पादने निमित्तं भवत (युवाम्) यूयं (पृतनासु) शत्रुसेनासु (वह्नयः) सोत्साहाः सन्तः (युत्सु) युद्धेषु (युवाम्) युष्माकं (इत्) ज्ञानं वर्धतामिति युष्माभिः कर्तव्यम् ॥४॥