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नू नो॒ गोम॑द्वी॒रव॑द्धेहि॒ रत्न॒मुषो॒ अश्वा॑वत्पुरु॒भोजो॑ अ॒स्मे । मा नो॑ ब॒र्हिः पु॑रु॒षता॑ नि॒दे क॑र्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥

English Transliteration

nū no gomad vīravad dhehi ratnam uṣo aśvāvat purubhojo asme | mā no barhiḥ puruṣatā nide kar yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

नु । नः॒ । गोऽम॑त् । वी॒रऽव॑त् । धे॒हि॒ । रत्न॑म् । उषः॑ । अश्व॑ऽवत् । पु॒रु॒ऽभोजः॑ । अ॒स्मे इति॑ । मा । नः॒ । ब॒र्हिः । पु॒रु॒षता॑ । नि॒दे । कः॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥ ७.७५.८

Rigveda » Mandal:7» Sukta:75» Mantra:8 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:22» Mantra:8 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:8


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ARYAMUNI

अब उषःकाल में प्रार्थना का विधान कथन करते हैं।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (अस्मे) हमारे लिए (अश्वावत्) अश्वोंवाले यान दें, (पुरुभोजः) अनेक प्रकार के भोग प्रदान करें, (नु) निश्चय करके (नः) हमको (गोमत् वीरवत्) पुष्ट इन्द्रियोंवाले वीर पुरुष और (रत्नं) रत्न तथा ऐश्वर्य्य (धेहि) प्रदान करें और (पुरुषता) पुरुषसमूह में (नः) हमारे (बर्हिः) यज्ञ की (निदे) निन्दा (मा) मत (कः) हो और (नः) हमको (यूयं) आप (स्वस्तिभिः) स्वस्तिवाचनों से (सदा) सदा (पात) पवित्र करें ॥८॥
Connotation: - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे याज्ञिक तथा विद्वान् पुरुषो ! तुम सदा उषःकाल में यह प्रार्थना करो कि हे भगवन् ! आप हमें विविध प्रकार के यानादि पदार्थ और दृढ इन्द्रियोंवाली पुत्र-पौत्रादि सन्तति प्रदान करें। हमारे यज्ञ की कोई निन्दा न करे, प्रत्युत सब अनुष्ठानी बन कर हमारे सहकारी हों। हम निन्दित कर्मों के अपयश से सदैव भयभीत रहें। आप ऐसी कृपा करें कि हम आपसे प्रार्थना करते हुए सदा अपना कल्याण ही देखें। यह उपासक की प्रार्थना करने का प्रकार है ॥८॥ यह ७५वाँ सूक्त समाप्त हुआ ॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! (अस्मे) अस्मभ्यं (अश्वावत्) बहुवेगयुक्तं (गोमत्) प्रकाशयुक्तं (वीरवत्) वीरतायुक्तं (पुरुभोजः) भोगप्रदं (रत्नम्) रत्नयुक्तं (नु) निश्चयेन (नः) अस्मान् (धेहि) देहि (नः बर्हिः) अस्मद्यज्ञं (कः) कोऽपि पुरुषो (मा) (निदे) निन्दा मा कार्षीः, निन्दा मा कुर्वित्यर्थः (पुरुषता) जनतायां कदापि निन्दां न (कः) कुर्यादित्यर्थः (यूयम्) भवान् (पात) रक्षतु (सदा) सदैव (नः) अस्मान् इति वयं प्रार्थयामहे ॥८॥ इति पञ्चसप्ततितमं सूक्तम् ॥