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आ नो॑ दे॒वेभि॒रुप॑ यातम॒र्वाक्स॒जोष॑सा नासत्या॒ रथे॑न । यु॒वोर्हि न॑: स॒ख्या पित्र्या॑णि समा॒नो बन्धु॑रु॒त तस्य॑ वित्तम् ॥

English Transliteration

ā no devebhir upa yātam arvāk sajoṣasā nāsatyā rathena | yuvor hi naḥ sakhyā pitryāṇi samāno bandhur uta tasya vittam ||

Pad Path

आ । नः॒ । दे॒वेभिः॑ । उप॑ । या॒त॒म् । अ॒र्वाक् । स॒ऽजोष॑सा । ना॒स॒त्या॒ । रथे॑न । यु॒वोः । हि । नः॒ । स॒ख्या । पित्र्या॑णि । स॒मा॒नः । बन्धुः॑ । उ॒त । तस्य॑ । वि॒त्त॒म् ॥ ७.७२.२

Rigveda » Mandal:7» Sukta:72» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:19» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:5» Mantra:2


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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (देवेभिः) दिव्यशक्तिसम्पन्न (नासत्या) सत्यवादी विद्वान् (रथेन) यान द्वारा (नः) हमको (आ) भले प्रकार (उपयातं) प्राप्त हों (उत) और (अर्वाक् सजोषसा) अपनी दिव्यवाणी से (नः) हमें (तस्य वित्तं) उस ज्ञानरूप धन को प्रदान करें (हि) निश्चय करके (युवोः) तुम्हारी (सख्या) मैत्री (पित्र्याणि बन्धुः) पिता तथा बन्धु के (समानः) समान हो ॥२॥
Connotation: - हे यजमानो ! तुम सत्यवादी विद्वानों का भले प्रकार सत्कार करो और उनको पिता तथा बन्धु की भाँति मानकर उनसे ब्रह्मविद्यारूप धन का लाभ करो, जो तुम्हारे जीवन का उद्देश्य है अर्थात् तुम उन अध्यापक तथा उपदेशकों की सेवा में प्रेमपूर्वक प्रवृत्त रहो, जिससे वे प्रसन्न हुए तुम्हें ब्रह्मज्ञान का उपदेश करें ॥ कई एक टीकाकार इस मन्त्र से अश्विनीकुमारों की उत्पत्ति निकालते हैं कि विवस्वान् की सरण्यु नामक स्त्री ने किसी कारण से घोड़ी का रूप धारण कर लिया, पुनः विवस्वान् उसके मोह में आकर घोड़ा बन गया। उन दोनों के समागम से जो सन्तान उत्पन्न हुई, उसका नाम ‘अश्विनीकुमार’ वा ‘नासत्या’ है ॥ इसी प्रसङ्ग में यह भी लिखा है कि विवस्वान्रूप पिता तथा सरण्युरूप माता से पहले-पहल जो सन्तान उत्पन्न हुई, उसका नाम यम-यमी था अर्थात् यम भाई और यमी बहिन थी और दोनों के विवाह का उल्लेख भी है ॥ उपर्य्युक्त मन्त्र से यह कथा घड़ना सर्वथा मिथ्या है, क्योंकि वास्तव में कोई विवस्वान् पिता और न कोई सरण्यु माता थी। यह अलङ्कार है, जिसको आधुनिक टीकाकारों ने न समझ कर कुछ का कुछ लिख दिया है। विवस्वान् नाम सूर्य्य और सरण्यु नाम प्रकृति का है। जब कालक्रम से सूर्य्य द्वारा प्रकृति में संसाररूप सन्तति उत्पन्न होती है, तब प्रथम उसमे यम=काल और यमी=वृद्धि इन दोनों का जोड़ा उत्पन्न होता है। किसी पदार्थ को वृद्धिकाल में भोगना पाप है, इसीलिये इसके भोगने का निषेध किया है और अलङ्कार द्वारा यह भी दर्शाया है कि एक कुल में उत्पन्न हुए भाई-बहिन का विवाह निषिद्ध है, अस्तु, हम इस अलङ्कार का वर्णन यम-यमी सूक्त में विस्तारपूर्वक करेंगे, यहाँ इतना लिखना ही पर्याप्त है कि अश्विनीकुमारों की उत्पत्तिविषयक इस कथा का मन्त्र में लेश भी नहीं ॥२॥
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ARYAMUNI

Word-Meaning: - (देवेभिः) दिव्यशक्तिभिर्युक्ताः (नासत्या) हे सत्यवादिनो विद्वांसः ! यूयं (रथेन) यानेन यानमारुह्य इत्यर्थः (नः) अस्मान् (आ) सम्यक् (उप यातम्) अगच्छत (उत) अन्यच्च (अर्वाक् सजोषसा) आत्मनो दिव्यशक्तिभिः (तस्य वित्तम्) तज्ज्ञानात्मकं धनं (नः) अस्मभ्यं प्रयच्छत। यतः (युवोः) युष्माकं (सख्या) मैत्री (हि) निश्चयेन (पित्र्याणि बन्धुः) पितृभिर्बन्धुभिश्च (समानः) तुल्या भवतीत्यर्थः ॥२॥