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नू त्वाम॑ग्न ईमहे॒ वसि॑ष्ठा ईशा॒नं सू॑नो सहसो॒ वसू॑नाम्। इषं॑ स्तो॒तृभ्यो॑ म॒घव॑द्भ्य आनड्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥७॥

English Transliteration

nū tvām agna īmahe vasiṣṭhā īśānaṁ sūno sahaso vasūnām | iṣaṁ stotṛbhyo maghavadbhya ānaḍ yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

नु। त्वाम्। अ॒ग्ने॒। ई॒म॒हे॒। वसि॑ष्ठाः। ई॒शा॒नम्। सू॒नो॒ इति॑। स॒ह॒सः॒। वसू॑नाम्। इष॑म्। स्तो॒तृऽभ्यः॑। म॒घव॑त्ऽभ्यः। आ॒न॒ट्। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:7» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:7 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन अच्छा, चतुर, अतिबलवान् तथा प्रशंसित होता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सहसः) अतिबलवान् के (सूनो) सत्पुत्र (अग्ने) विज्ञानस्वरूप ! (वसूनाम्) पृथिव्यादि तत्त्व साधनों के बीच (ईशानम्) समर्थ बलवान् (त्वाम्) आप को (वसिष्ठाः) अत्यन्त वसनेवाले हम लोग (ईमहे) याचना करते हैं (यूयम्) तुम लोग (स्तोतृभ्यः) सब विद्याओं की प्रशंसा करनेवाले (मघवद्भ्यः) बहुत धनयुक्त होने के लिये (नः) हमारी (सदा) सदा (पात) रक्षा करो। जो तुमको और (इषम्) अन्नादि को (नु) शीघ्र (आनट्) व्याप्त हो, उसकी तुम (स्वस्तिभिः) स्वस्थता करानेवाली क्रियाओं से सदा रक्षा करो ॥७॥
Connotation: - जो विद्वानों के लिये धन देता है और विद्या की याचना करता है, जिसकी रक्षा आप्त करते हैं, वह सदा रक्षा को प्राप्त, बढ़ता हुआ सब ऐश्वर्य्य से युक्त होता है ॥७॥ इस सूक्त में अग्नि के दृष्टान्त से राजादि के गुणों का वर्णन होने से सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह सातवाँ सूक्त और दशवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः कः सुरक्षो बलिष्ठः प्रशंसितो जायत इत्याह ॥

Anvay:

हे सहसः सूनोऽग्ने ! वसूनां मध्ये ईशानं त्वां वयं वसिष्ठा ईमहे यूयं स्तोतृभ्यो मघवद्भ्यो नोऽस्मान् सदा पात यो युष्मान्न्विषं चानट् तं यूयं स्वस्तिभिः सदा पात ॥७॥

Word-Meaning: - (नु) क्षिप्रम्। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (त्वाम्) (अग्ने) विज्ञानस्वरूप (ईमहे) याचामहे (वसिष्ठाः) अतिशयेन वसवः (ईशानम्) ईषणशीलम् (सूनो) सत्पुत्र (सहसः) बलिष्ठस्य (वसूनाम्) पृथिव्यादितत्त्वानां धनानां वा (इषम्) अन्नादिकम् (स्तोतृभ्यः) सर्वविद्याप्रशंसकेभ्यः (मघवद्भ्यः) बहुधनयुक्तेभ्यः (आनट्) व्याप्नोति (यूयम्) (पात) रक्षत (स्वस्तिभिः) स्वास्थ्यकारिणीभिः क्रियाभिः (सदा) (नः) अस्मान् ॥७॥
Connotation: - यो विद्वद्भ्यो धनं प्रयच्छति विद्यां च याचते यस्य रक्षामाप्ता विदधति सर्वदा रक्षितो वर्धमानः सन् सर्वैश्वर्यो जायत इति ॥७॥ अत्राग्निदृष्टान्तेन राजादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्तमं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जो विद्वानांना धन देतो व विद्येची याचना करतो, ज्याचे रक्षण सर्व विद्वान करतात तो सदैव रक्षित असून उन्नती करतो व सर्व ऐश्वर्य प्राप्त करतो. ॥ ७ ॥