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असा॑दि वृ॒तो वह्नि॑राजग॒न्वान॒ग्निर्ब्र॒ह्मा नृ॒षद॑ने विध॒र्ता। द्यौश्च॒ यं पृ॑थि॒वी वा॑वृ॒धाते॒ आ यं होता॒ यज॑ति वि॒श्ववा॑रम् ॥५॥

English Transliteration

asādi vṛto vahnir ājaganvān agnir brahmā nṛṣadane vidhartā | dyauś ca yam pṛthivī vāvṛdhāte ā yaṁ hotā yajati viśvavāram ||

Pad Path

असा॑दि। वृ॒तः। वह्निः॑। आ॒ऽज॒ग॒न्वान्। अ॒ग्निः। ब्र॒ह्मा। नृ॒ऽसद॑ने। वि॒ऽध॒र्ता। द्यौः। च॒। यम्। पृ॒थि॒वी। व॒वृ॒धाते॒ इति॑। आ। यम्। होता॑। यज॑ति। वि॒श्वऽवा॑रम् ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:7» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर अग्नि कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (नृषदने) मनुष्यों के स्थान में (ब्रह्मा) चार वेद का जाननेवाला होता है, वैसे जो (वृतः) स्वीकार किया (आजगन्वान्) अच्छे प्रकार प्राप्त होनेवाला (वह्निः) पहुँचानेवाले (अग्निः) अग्नि के तुल्य (विधर्ता) विशेष कर धारणकर्ता (असादि) अच्छे प्रकार स्थित होता है (यम्) जिसको (द्यौः) सूर्य (च) और (पृथिवी) भूमि (वावृधाते) बढ़ाते हैं (यम्) जिस (विश्ववारम्) सबको स्वीकार करने योग्य को (होता) होमकर्ता (आ, यजति) अच्छे प्रकार सङ्ग करता है, उस को सब लोग जानें ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे अग्नि यथावत् सम्प्रयोग किया हुआ सब कार्य्यों को सिद्ध करता है, वैसे ही सत्कार कर स्वीकार किये वेद के विद्वान् लोग धर्मार्थ-काम-मोक्ष पदार्थों को सबको प्राप्त कराते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरग्निः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा नृषदने ब्रह्मा भवति तथा यो वृत आजगन्वान् वह्निरग्निर्विधर्ताऽसादि यं द्यौः पृथिवी च वावृधाते यं विश्ववारं होता आ यजति तं सर्वे विजानन्तु ॥५॥

Word-Meaning: - (असादि) आसद्यते (वृतः) स्वीकृतः (वह्निः) वोढा (आजगन्वान्) समन्ताद्गन्ता (अग्निः) पावक इव (ब्रह्मा) चतुर्वेदवित् (नृषदने) नृणां स्थाने (विधर्ता) विशेषेण धारकः (द्यौः) सूर्यः (च) यम् (पृथिवी) भूमी (वावृधाते) वर्धयतः (आ) (यम्) (होता) (यजति) सङ्गच्छते (विश्ववारम्) विश्वः सर्वैर्वरणीयम् ॥५॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाग्निर्यथावत्सम्प्रयुक्तः सन् सर्वाणि कार्य्याणि साध्नोति तथैव सत्कृत्य स्वीकृतवेदविद्वांसो धर्मार्थकाममोक्षान् पदार्थान् सर्वान् प्रापयन्ति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा यथायोग्य सम्प्रयुक्त केलेला अग्नी सर्व कार्य सिद्ध करतो तसे योग्य तऱ्हेने सत्कारित केलेले व स्वीकारित केलेले विद्वान लोक धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सर्वांना प्राप्त करवितात. ॥ ५ ॥