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प्र वो॑ दे॒वं चि॑त्सहसा॒नम॒ग्निमश्वं॒ न वा॒जिनं॑ हिषे॒ नमो॑भिः। भवा॑ नो दू॒तो अ॑ध्व॒रस्य॑ वि॒द्वान्त्मना॑ दे॒वेषु॑ विविदे मि॒तद्रुः॑ ॥१॥

English Transliteration

pra vo devaṁ cit sahasānam agnim aśvaṁ na vājinaṁ hiṣe namobhiḥ | bhavā no dūto adhvarasya vidvān tmanā deveṣu vivide mitadruḥ ||

Pad Path

प्र। वः॒। दे॒वम्। चि॒त्। स॒ह॒सा॒नम्। अ॒ग्निम्। अश्व॑म्। न। वा॒जिन॑म्। हि॒षे॒। नमः॑ऽभिः। भव॑। नः॒। दू॒तः। अ॒ध्व॒रस्य॑। वि॒द्वान्। त्मना॑। दे॒वेषु॑। वि॒वि॒दे॒। मि॒तऽद्रुः॑ ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:7» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:10» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सात ऋचावाले सातवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में कैसे पुरुष को राजा करें, इस विषय को कहते हैं।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (वः) तुमको (सहसानम्) यज्ञ के साधक (देवम्) दानशील (अग्निम्) विद्या से प्रकाशमान (अश्वम्, न) शीघ्र चलनेवाले घोड़े के तुल्य (वाजिनम्) उत्तम वेगवाले (नमोभिः) अन्नादि करके (प्र, हिषे) अच्छी वृद्धि करता हूँ, वैसे इसको तुम लोग भी बढ़ाओ। हे राजन् ! (त्मना) आत्मा से जो (देवेषु) विद्वानों में (मितद्रुः) शास्त्रानुकूल पदार्थों को प्राप्त होनेवाला (विद्वान्) विद्वान् (विविदे) जाना जाता है उसको प्राप्त होके (नः) हमारे (अध्वरस्य) अहिंसा और न्याययुक्तव्यवहार के (दूतः) सुशिक्षित दूत के तुल्य (भव) हूजिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो प्रजा के किये आक्षेपों को सहता, घोड़े के तुल्य सब कार्य्यों को शीघ्र व्याप्त होता, विद्वानों में विद्वान्, दूत के तुल्य समाचार पहुँचानेवाला हो, उसी को राजा करो ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ कीदृशं राजानं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथाऽहं वः सहसानं देवमग्निमश्वं न वाजिनं नमोभिः प्र हिषे तथैतं यूयमपि वर्धयत। हे राजँस्त्मना यो देवेषु मितद्रुर्विद्वान् विविदे तं प्राप्य नोऽध्वरस्य दूतो भव ॥१॥

Word-Meaning: - (प्र) (वः) युष्मान् (देवम्) दातारम् (चित्) अपि (सहसानम्) (अग्निम्) विद्यया प्रकाशमानम् (अश्वम्) आशुगामिनम् (न) इव (वाजिनम्) प्रशस्तवेगवन्तम् (हिषे) प्रहिणोमि (नमोभिः) अन्नादिभिः (भवा) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (दूतः) सुशिक्षितो दूत इव (अध्वरस्य) अहिंसामयस्य न्याय्यव्यवहारस्य (विद्वान्) (त्मना) आत्मना (देवेषु) विद्वत्सु (विविदे) विद्वत्सु (विविदे) विज्ञायते (मितद्रुः) यो मितं शास्त्रसंमितं द्रवति प्राप्नोति सः ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः । यो हि प्रजाक्षेपं सहतेऽश्व इव सर्वकार्याणि सद्यो व्याप्नोति विद्वत्सु विद्वान् दूत इव प्राप्तसमाचारो भवेत्तमेव राजानं कुरुत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नीच्या दृष्टांताने राजा इत्यादीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो प्रजेसाठी निंदा सहन करतो, घोड्याप्रमाणे सर्व कार्य शीघ्रतेने करतो, विद्वानांमध्ये विद्वान दूताप्रमाणे कार्य करणारा असतो त्यालाच राजा करा. ॥ १ ॥