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अ॒वि॒ष्टं धी॒ष्व॑श्विना न आ॒सु प्र॒जाव॒द्रेतो॒ अह्र॑यं नो अस्तु । आ वां॑ तो॒के तन॑ये॒ तूतु॑जानाः सु॒रत्ना॑सो दे॒ववी॑तिं गमेम ॥

English Transliteration

aviṣṭaṁ dhīṣv aśvinā na āsu prajāvad reto ahrayaṁ no astu | ā vāṁ toke tanaye tūtujānāḥ suratnāso devavītiṁ gamema ||

Pad Path

अ॒वि॒ष्टम् । धी॒षु । अ॒श्वि॒ना॒ । नः॒ । आ॒सु । प्र॒जाऽव॑त् । रेतः॑ । अह्र॑यम् । नः॒ । अ॒स्तु॒ । आ । वा॒म् । तो॒के । तन॑ये । तूतु॑जानाः । सु॒ऽरत्ना॑सः । दे॒वऽवी॑तिम् । ग॒मे॒म॒ ॥ ७.६७.६

Rigveda » Mandal:7» Sukta:67» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:13» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:6


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ARYAMUNI

अब मनुष्यजन्म के फलचतुष्टय की प्रार्थना करते हैं।

Word-Meaning: - (वां, अश्विना) हे सन्तति तथा ऐश्वर्य्य के दाता परमात्मन् ! (धीषु, अविष्टं) कर्मों में सुरक्षित (नः) हमको (प्रजावत्) प्रजा उत्पन्न करने के लिए (अह्रयं) अमोघ (रेतः) वीर्य्य प्राप्त (अस्तु) हो (आ) और (नः) हमको (तोके) हमारे पुत्रों को (तनये) उनके पुत्र पौत्रादिकों के लिए (सुरत्नासः, तूतुजानाः) सुन्दर रत्नोंवाला यथेष्ट धन दें, ताकि हम (देववीतिं) विद्वानों की संगति को प्राप्त हों ॥६॥
Connotation: - हे भगवन् ! प्रजा उत्पन्न करने का एकमात्र साधन अमोघ वीर्य्य हमें प्रदान करें, ताकि हम इस संसार में सन्ततिरहित न हों और हमको तथा उत्पन्न हुई सन्तान को धन दें, ताकि हम सुख से अपना जीवन व्यतीत कर सकें ॥ और जो “देववीति” पद से विद्वानों का सत्सङ्ग कथन किया है, उसका तात्पर्य्य यह है कि हे परमात्मन् ! आपकी कृपा से हमें धर्म और मोक्ष भी प्राप्त हो। इस मन्त्र में संक्षेप से मनुष्यजन्म के फलचतुष्टय की प्रार्थना की गई है अर्थात् “सुरत्नास:” पद से अर्थ, “तनय” पद से धर्मपूर्वक उत्पन्न की हुई सन्ततिरूप कामना और “देववीति” पद से धर्म तथा मोक्ष का वर्णन किया है, क्योंकि वेदज्ञ विद्वानों के सत्सङ्ग किये बिना धर्म का बोध नहीं होता और धर्म के बिना मोक्ष=सुख का मिलना असम्भव है ॥ जो कई एक लोग अपनी अज्ञानता से यह कहा करते हैं कि वेदों में केवल प्राकृत बातों का वर्णन है, उनको ऐसे मन्त्रों पर ध्यान देन चहिए, जिनमें मनुष्य के कर्त्तव्यरूप लक्ष्य का स्पष्ट वर्णन पाया जाता है। ऐसा अन्य किसी ग्रन्थ में नहीं मिलता, इसलिए वेदों के अपूर्व भावों पर दृष्टि डालना प्रत्येक आर्य्यसन्तान का परम कर्तव्य है ॥६॥
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ARYAMUNI

अथ मनुष्यजन्मनः फलचतुष्टयं प्रार्थ्यते।

Word-Meaning: - (अश्विना) हे ऐश्वर्यप्रद परमात्मन् ! (आसु धीषु) एषु कर्मसु (नः) अस्मान् (अविष्टं) रक्ष, अथ च (प्रजावत्) सन्तत्यर्थम् (अह्रयम्) अमोघम्, (रेतः) वीर्यं देहि (आ) अपरञ्च (नः) अस्माकम्, (वां) भवतः प्रसादात् (तोके) पुत्रे (तनये) पौत्रे सन्ततिविषये, इत्यर्थः (सुरत्नासः) शोभनधनाः (तूतुजानाः) प्रभूतं धनं प्रयच्छन्तो वयं (देववीतिं) देवसङ्गतिं प्राप्नुयाम ॥६॥