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प्रति॑ वां॒ रथं॑ नृपती ज॒रध्यै॑ ह॒विष्म॑ता॒ मन॑सा य॒ज्ञिये॑न । यो वां॑ दू॒तो न धि॑ष्ण्या॒वजी॑ग॒रच्छा॑ सू॒नुर्न पि॒तरा॑ विवक्मि ॥

English Transliteration

prati vāṁ rathaṁ nṛpatī jaradhyai haviṣmatā manasā yajñiyena | yo vāṁ dūto na dhiṣṇyāv ajīgar acchā sūnur na pitarā vivakmi ||

Pad Path

प्रति॑ । वा॒म् । रथ॑म् । नृ॒प॒ती॒ऽ इति॑ नृऽपती । ज॒रध्यै॑ । ह॒विष्म॑ता । मन॑सा । य॒ज्ञिये॑न । यः । वा॒म् । दू॒तः । न । धि॒ष्ण्यौ॒ । अजी॑गः । अच्छ॑ । सू॒नुः । न । पि॒तरा॑ । वि॒व॒क्मि॒ ॥ ७.६७.१

Rigveda » Mandal:7» Sukta:67» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:12» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:1


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ARYAMUNI

अब परमात्मा इस सूक्त में राजधर्म का उपदेश करते हैं।

Word-Meaning: - (वां) हे अध्यापक वा उपदेशको ! (रथं) तुम्हारे मार्ग को (नृपती) राजा (हविष्मता) हविवाले (मनसा) मानस (यज्ञियेन) याज्ञिक भावों से (प्रति, जरध्यै) प्रतिदिन स्तुति करे, मैं (वां) तुम लोगों को (दूतः) दूत के (न) समान (यः) जो (विवक्मि) उपदेश करता हूँ, उसको (अच्छ) भलीभाँति सुनो, (पितरा) पितर लोग (सुनुः) अपने पुत्रों को (न) जिस प्रकार (अजीगः) जगाते हैं, इसी प्रकार (धिष्ण्यौ) धारणवाले तुम लोग उपदेश द्वारा राजाओं को जगाओ ॥१॥
Connotation: - हे धारणावाले अध्यापक तथा उपदेशकों ! मैं तुम्हें दूत के समान उपदेश करता हूँ कि जिस प्रकार पिता अपने पुत्र को सुमार्ग में प्रवृत्त होने के लिए सदुपदेश करता है, इसी प्रकार तुम लोग भी वेदों के उपदेश द्वारा राजाओं को सन्मार्गगामी बनाओ, ताकि वह ऐश्वर्य्यप्रद यज्ञों से वेदमार्ग का पालन करे अथवा ध्यानयज्ञों से तुम्हारे मार्ग को विस्तृत करे ॥ भाव यह है कि जिस सम्राट् को अनुष्ठानी उपदेशक महात्मा अपने उपदेशों द्वारा उत्तेजित करते हुए स्वकर्तव्य कर्मों में लगाये रहते हैं और राजा भी उनके सदुपदेशों को अपने हार्दिक भाव से ग्रहण करता है, वह कदापि ऐश्वर्य्य से भ्रष्ट नहीं होता, इसलिए हे उपदेशकों ! राजा तथा प्रजा को शुभ मार्ग में चलने का सदा उपदेश करो, यह मेरा तुम्हारे लिए आदेश है ॥१॥
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ARYAMUNI

अथास्मिन् राजधर्म्म उपदिश्यते।

Word-Meaning: - (वां) युवयोः अध्यापकोपदेशकयोः (रथम्) मार्गं (नृपती) राजानौ (हविष्मता) तेजस्विनौ (मनसा) मानसेन (यज्ञियेन) याज्ञिकेन भावेन (प्रति, जरध्यै) प्रतिदिनं स्तुतिं कुरुतां (वां) भवन्तौ (दूतः, न) दूत इव यः यत् (विवक्मि) उपदिशामि तत् (अच्छ) सम्यक्प्रकारेण भवन्तः शृण्वन्तु, उक्तार्थं दृष्टान्तेनाभिव्यनक्ति, (पितरा) यथा मातापितरौ (सूनुः) स्वसन्ततिम् (अजीगः) उद्बोधयतः, (न) एवं (धिष्ण्यौ) धीमन्तौ भवन्तौ राजानौ प्रतिबोधयतामिति भावः ॥१॥