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प्र मि॒त्रयो॒र्वरु॑णयो॒: स्तोमो॑ न एतु शू॒ष्य॑: । नम॑स्वान्तुविजा॒तयो॑: ॥

English Transliteration

pra mitrayor varuṇayoḥ stomo na etu śūṣyaḥ | namasvān tuvijātayoḥ ||

Pad Path

प्र । मि॒त्रयोः॑ । वरु॑णयोः । स्तोमः॑ । नः॒ । ए॒तु॒ । शू॒ष्यः॑ । नम॑स्वान् । तु॒वि॒ऽजा॒तयोः॑ ॥ ७.६६.१

Rigveda » Mandal:7» Sukta:66» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:8» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:1


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ARYAMUNI

अब पूर्वोक्त विज्ञानयज्ञ को प्रकारान्तर से वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - (मित्रयोः, वरुणयोः) हे प्रेममय सर्वाधार परमात्मन् ! (नः) हमारा (प्र, स्तोमः) यह विस्तृत विज्ञानयज्ञ (शुष्यः) सब प्रकार की वृद्धि करनेवाला (एतु) हो (तु) और (विजातयोः) हे जन्म-मरण से रहित भगवन् ! यह (नमस्वान्) बृहदन्न से सम्पन्न हो ॥१॥
Connotation: - “विगतम् जातम् यस्मात्स विजात:”=जिससे जन्म विगत हो, उसको “विजात” कहते हैं, अर्थात् विजात के अर्थ यहाँ आकृतिरहित के हैं अथवा “जननं जातम्”=उत्पन्न होनेवाले को “जात” और इससे विपरीत जन्मरहित को “अजात” कहते हैं। इस मन्त्र में जन्म तथा मृत्यु से रहित मित्रावरुण नामक परमात्मा से यह प्रार्थना की गई है कि हे भगवन् ! आप ऐसी कृपा करें, जिससे हमारा यह विज्ञानरूपी यज्ञ सब प्रकार के सुखों का देनेवाला और प्रभूत अन्न से समृद्ध हो ॥ यदि यह कहा जाय कि “विजातयो:” द्विवचन होने से यहाँ मित्र और वरुण दो देवताओं का ही ग्रहण हो सकता है, एक ईश्वर का नहीं ? इसका उत्तर यह है कि “मित्रयो:” “वरुणयो:” यहाँ भी एक शब्द में द्विवचन है, परन्तु अर्थ एक के ही किये जाते हैं। जिसका कारण यह समझना चाहिये कि वेद में वचन, विभक्ति तथा लिङ्ग का नियम नहीं, अर्थात् “बहुलं छन्दसि” अष्टा० २।४।७३॥ इस पाणिनिकृत सूत्र के अनुसार छन्द=वेद में सब बातों का व्यत्यय हो जाता है, इसलिये कोई दोष नहीं ॥ और जो लोग “नमः” शब्द का अर्थ अन्न नहीं मानते, उनको ध्यान रखना चाहिए कि उपर्युक्त मन्त्र में “नम:” शब्द अन्न का वाचक है, जैसा कि अर्थ से स्पष्ट है, किसी अन्य पदार्थ का नहीं ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ विज्ञानमयो यज्ञः प्रकारान्तरेण वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (मित्रयोः, वरुणयोः) हे प्रेममय सर्वाधार परमात्मन् ! (नः) अस्माकम् (प्र, स्तोमः) एष विस्तृतो यज्ञः (शूष्यः) विविधसुखकरः (एतु) भवतु (तु) अथ च (विजातयोः) हे जन्ममरणरहित भगवन्, अयं यज्ञः (नमस्वान्) अन्नबाहुल्ययुक्तः स्यात् ॥१॥