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उद्वे॑ति सु॒भगो॑ वि॒श्वच॑क्षा॒: साधा॑रण॒: सूर्यो॒ मानु॑षाणाम् । चक्षु॑र्मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य दे॒वश्चर्मे॑व॒ यः स॒मवि॑व्य॒क्तमां॑सि ॥

English Transliteration

ud v eti subhago viśvacakṣāḥ sādhāraṇaḥ sūryo mānuṣāṇām | cakṣur mitrasya varuṇasya devaś carmeva yaḥ samavivyak tamāṁsi ||

Pad Path

उत् । ऊँ॒ इति॑ । ए॒ति॒ । सु॒ऽभगः॑ । वि॒श्वऽच॑क्षाः । साधा॑रणः । सूर्यः॑ । मानु॑षाणाम् । चक्षुः॑ । मि॒त्रस्य॑ । वरु॑णस्य । दे॒वः । चर्म॑ऽइव । यः । स॒म्ऽअवि॑व्यक् । तमां॑सि ॥ ७.६३.१

Rigveda » Mandal:7» Sukta:63» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:1


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ARYAMUNI

अब प्राणायामादि संयमों द्वारा ध्येय परमात्मा का वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - (यः, देवः) जो दिव्यरूप परमात्मा (मित्रस्य, वरुणस्य) अध्यापक तथा उपदेशकों को (चक्षुः) मार्ग दिखलानेवाला और जो (तमांसि) अज्ञानों को (चर्म, इव) तुच्छ तृणों के समान (सम्) भले प्रकार (अविव्यक्) नाश करता है, वही (मानुषाणां) सब मनुष्यों का (साधारणः) सामान्यरूप से (सूर्यः) प्रकाशक, (विश्वचक्षाः) सर्वद्रष्टा और (सुभगः) ऐश्वर्यसम्पन्न है, वह परमात्मदेव प्राणायामादि संयमों से (उद्वेति) प्रकाशित होता है ॥१॥
Connotation: - परमात्मदेव ही अध्यापक तथा उपदेशकों को सन्मार्ग दिखलानेवाला, सब प्रकार के अज्ञानों का नाशक है, वह सर्वद्रष्टा, सर्वप्रकाशक तथा सर्वैश्वर्यसम्पन्न परमात्मा प्राणायामादि संयमों द्वारा हमारे हृदय में प्रकाशित होता है, इसी भाव को “चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य” यजु॰ ७।४२॥ में प्रतिपादन किया है कि वही परमात्मा सबका प्रकाशक और सन्मार्ग दिखलानेवाला है। “साधारणः” शब्द सामान्यभाव से सर्वत्र व्याप्त होने के अभिप्राय से आया है, जिसका अर्थ ऊपर स्पष्ट है ॥१॥
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ARYAMUNI

अथ प्राणायामादिसंयमैर्ध्येयस्य परमात्मनो ध्यानमुपदिश्यते।

Word-Meaning: - (यः, देवः) यः ज्योतिःस्वरूपः परमात्मा (मित्रस्य, वरुणस्य) अध्यापकोपदेशकयोः (चक्षुः) नेत्रम् अस्ति अन्यच्च यः (तमांसि) अज्ञानानि (चर्म, इव) तृणानीव (सम्) सम्यक्तया (अविव्यक्) नाशयति, स एव (मानुषाणां) सर्वमनुजानां (साधारणः) सामान्यरूपेण (सूर्यः) प्रकाशकः (विश्वचक्षाः) सर्वद्रष्टा (सुभगः) ऐश्वर्यसम्पन्नोऽस्ति, स परमात्मा प्राणायामादिसंयमैः (उद्वेति) प्रकटीभवति ॥१॥