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प्र वां॒ स मि॑त्रावरुणावृ॒तावा॒ विप्रो॒ मन्मा॑नि दीर्घ॒श्रुदि॑यर्ति। यस्य॒ ब्रह्मा॑णि सुक्रतू॒ अवा॑थ॒ आ यत्क्रत्वा॒ न श॒रदः॑ पृ॒णैथे॑ ॥२॥

English Transliteration

pra vāṁ sa mitrāvaruṇāv ṛtāvā vipro manmāni dīrghaśrud iyarti | yasya brahmāṇi sukratū avātha ā yat kratvā na śaradaḥ pṛṇaithe ||

Pad Path

प्र। वा॒म्। सः। मि॒त्रा॒व॒रु॒णौ॒। ऋ॒तऽवा॑। विप्रः॑। मन्मा॑नि। दी॒र्घ॒ऽश्रुत्। इ॒य॒र्ति॒। यस्य॑। ब्रह्मा॑णि। सु॒क्र॒तू॒ इति॑ सुऽक्रतू। अवा॑थः। आ। यत्। क्रत्वा॑। न। श॒रदः॑। पृ॒णैथे॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:61» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:3» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे दोनों कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मित्रावरुणौ) प्राण और उदान वायु के सदृश वर्त्तमान अध्यापक और उपदेशक जनो ! (सः) वह (ऋतावा) सत्य का सेवन करने और (दीर्घश्रुत्) बहुत शास्त्रों को वा बहुत काल पर्य्यन्त शास्त्रों को सुननेवाला (विप्रः) बुद्धिमान् जन (वाम्) आप दोनों के (मन्मानि) विज्ञानों को (इयर्त्ति) प्राप्त होता है (यस्य) जिसके (ब्रह्माणि) धनों को (सुक्रतू) सुन्दर बुद्धि से युक्त होते हुए आप (प्र, अवाथः) रक्षा करें और (यत्) जिसकी (क्रत्वा) बुद्धि से (न) जैसे पदार्थों को वैसे (शरदः) शरद् आदि ऋतुओं को (आ, पृणैथे) अच्छे प्रकार पूरो, उन आप दोनों का हम लोग निरन्तर सत्कार करें ॥२॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जो बहुत काल पर्य्यन्त ब्रह्मचर्य्य से शास्त्रों को पढ़ता है, वही बुद्धिमान् होकर सब मनुष्यों की रक्षा करने को समर्थ होता है ॥२॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां श्रीपरमविदुषां विरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना निर्मिते संस्कृतार्यभाषाभ्यां समन्विते सुप्रमाणयुक्त ऋग्वेदभाष्ये सप्तमे मण्डले चतुर्थानुवाक एकषष्टितमे सूक्ते पञ्चमाष्टके पञ्चमाध्याये तृतीयवर्गे द्वितीयमन्त्रस्य भाष्यं समाप्तम् ॥ उक्तस्वामिकृतं भाष्यं चैतावदेवेति ॥ सं० १९५६ वि० आषाढ कृष्णा ५ को छपके समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तौ कीदृशौ भवेतामित्याह ॥

Anvay:

हे मित्रावरुणा ! स ऋतावा दीर्घश्रुद्विप्रो वां मन्मानीयर्ति यस्य ब्रह्माणि सुक्रतू सन्तौ युवां प्रावाथः यत् क्रत्वा न शरद आपृणैथे तौ युवां वयं सततं सत्कुर्याम ॥२॥

Word-Meaning: - (प्र) (वाम्) युवाम् (सः) (मित्रावरुणौ) प्राणोदानाविवाध्यापकोपदेशकौ (ऋतावा) सत्यसेवी (विप्रः) मेधावी (मन्मानि) मन्तव्यानि विज्ञानानि (दीर्घश्रुत्) यो दीर्घं विस्तीर्णानि बहुकालं वा शास्त्राणि शृणोति (इयर्ति) प्राप्नोति (यस्य) (ब्रह्माणि) धनानि (सुक्रतू) शोभनप्रज्ञायुक्तौ (अवाथः) रक्षेताम् (आ) (यत्) (क्रत्वा) प्रज्ञया (न) इव (शरदः) शरदाद्यृतून् (पृणैथे) पूरयतम् ॥२॥
Connotation: - हे विद्वांसः ! यो दीर्घकालं ब्रह्मचर्येण शास्त्राण्यधीते स एव मेधावी भूत्वा सर्वान् मनुष्यान् रक्षितुं शक्नोति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे विद्वानांनो ! जो दीर्घकालपर्यंत ब्रह्मचर्याने शास्त्र शिकतो तोच बुद्धिमान बनून सर्व माणसांचे रक्षण करण्यास समर्थ असतो.