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ए॒ष स्य मि॑त्रावरुणा नृ॒चक्षा॑ उ॒भे उदे॑ति॒ सूर्यो॑ अ॒भि ज्मन्। विश्व॑स्य स्था॒तुर्जग॑तश्च गो॒पा ऋ॒जु मर्ते॑षु वृजि॒ना च॒ पश्य॑न् ॥२॥

English Transliteration

eṣa sya mitrāvaruṇā nṛcakṣā ubhe ud eti sūryo abhi jman | viśvasya sthātur jagataś ca gopā ṛju marteṣu vṛjinā ca paśyan ||

Pad Path

ए॒षः। स्यः। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। नृ॒ऽचक्षाः॑। उ॒भे इति॑। उत्। ए॒ति॒। सूर्यः॑। अ॒भि। ज्मन्। विश्व॑स्य। स्था॒तुः। जग॑तः। च॒। गो॒पाः। ऋ॒जु। मर्ते॑षु। वृ॒जि॒ना। च॒। पश्य॑न् ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:60» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:1» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा जगदीश्वर किसके सदृश क्या करता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (एषः) (स्यः) सो यह (नृचक्षाः) मनुष्यों के कर्मों को देखनेवाला परमात्मा (उभे) दोनों प्रकार के स्थूल और सूक्ष्म संसार में जैसे (ज्मन्) भूमि में (सूर्यः) सूर्य्य लोक (अभि, उत्, एति) सब ओर से उदय करता है, वैसे (विश्वस्य) सम्पूर्ण (स्थातुः) नहीं चलनेवाले और (जगतः) चलनेवाले संसार का भी (गोपाः) रक्षक वह (मर्तेषु) मनुष्यों में (ऋजु) सरलतापूर्वक (वृजिना) सेनाओं को (च) और (पश्यन्) विशेष कर के जानता हुआ (मित्रावरुणा) सब के प्राण और उदान वायु को प्रकाशित करता है ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे उदय को प्राप्त हुआ सूर्य्य समीप में वर्त्तमान स्थूल जगत् को प्रकाशित करता है, वैसे अन्तर्य्यामी ईश्वर स्थूल और सूक्ष्म जगत् और जीवों को सब प्रकार से प्रकाशित करता है और सब की उत्तम प्रकार रक्षा कर के सब के कर्मों को देखता हुआ यथायोग्य फल देता है ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स जगदीश्वरः कीदृशः किंवत्किं करोतीत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! एषः स्यो नृचक्षाः परमात्मोभे स्थूलसूक्ष्मे जगति यथा ज्मन् सूर्योऽभ्युदेति तथा विश्वस्य स्थातुर्जगतश्च गोपाः मर्तेष्वृजु वृजिना च पश्यन् मित्रावरुणा प्रकाशयति ॥२॥

Word-Meaning: - (एषः) (स्यः) सः (मित्रावरुणा) सर्वेषां प्राणोदानौ (नृचक्षाः) नृणां कर्मणां द्रष्टा (उभे) द्वे (उत्) (एति) उदयं करोति (सूर्यः) सवितृलोकः (अभि) अभितः (ज्मन्) भूमौ। ज्मेति पृथिवीनाम। (निघं०१.१)। (विश्वस्य) सर्वस्य (स्थातुः) स्थावरस्य (जगतः) जङ्गमस्य (च) (गोपाः) रक्षकः (ऋजु) सरलम् (मर्तेषु) मनुष्येषु (वृजिना) वृजिनानि बलानि (च) (पश्यन्) विजानन् ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथोदितः सूर्यः सन्निहितं स्थूलं जगत् प्रकाशयति तथान्तर्यामीश्वरस्स्थूलं सूक्ष्मं जगज्जीवांश्च सर्वतः प्रकाशयति सर्वान् संरक्ष्य सर्वेषां कर्माणि पश्यन् यथायोग्यं फलं प्रयच्छति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा उदयोन्मुख सूर्य सन्निहित स्थूल जगाला प्रकाशित करतो तसा अंतर्यामी ईश्वर स्थूल, सूक्ष्म जगाला व जीवांना सर्व प्रकारे प्रकाशित (प्रकट) करतो. सर्वांचे उत्तम प्रकारे रक्षण करून सर्वांचे कर्म पाहून यथायोग्य फळ देतो. ॥ २ ॥