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यो ब्रह्म॑णे सुम॒तिमा॒यजा॑ते॒ वाज॑स्य सा॒तौ प॑र॒मस्य॑ रा॒यः। सीक्ष॑न्त म॒न्युं म॒घवा॑नो अ॒र्य उ॒रु क्षया॑य चक्रिरे सु॒धातु॑ ॥११॥

English Transliteration

yo brahmaṇe sumatim āyajāte vājasya sātau paramasya rāyaḥ | sīkṣanta manyum maghavāno arya uru kṣayāya cakrire sudhātu ||

Pad Path

यः। ब्रह्म॑णे। सु॒ऽम॒तिम्। आ॒ऽयजा॑ते। वाज॑स्य। सा॒तौ। प॒र॒मस्य॑। रा॒यः। सीक्ष॑न्त। म॒न्युम्। म॒घऽवा॑नः। अ॒र्यः। उ॒रु। क्षया॑य। च॒क्रि॒रे॒। सु॒ऽधातु॑ ॥११॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:60» Mantra:11 | Ashtak:5» Adhyay:5» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (परमस्य) श्रेष्ठ (वाजस्य) विज्ञान और (रायः) धन के (सातौ) उत्तम प्रकार बाँटने में (ब्रह्मणे) धन के वा परमेश्वर के लिये (सुमतिम्) उत्तम बुद्धि को (आयजाते) सब प्रकार से प्राप्त होवें और जो (मघवानः) अत्यन्त धन से युक्त (अर्यः) यथावत् जाननेवाले (मन्युम्) क्रोध को (सीक्षन्त) सम्बन्धित करते हैं और (क्षयाय) निवास के लिये (उरु) बड़े (सुधातु) सुन्दर धातु सुवर्ण आदि जिसमें उस गृह को (चक्रिरे) सिद्ध करते हैं, वे ही लक्ष्मीवान् होते हैं ॥११॥
Connotation: - जो मनुष्य ईश्वर के विज्ञान के, उत्तम धन के लाभ के और श्रेष्ठ गृह के लिये क्रोध आदि दोषों का परित्याग कर के प्रयत्न करते हैं, वे सम्पूर्ण सुखों से युक्त होते हैं ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यः परमस्य वाजस्य रायः सातौ ब्रह्मणे सुमतिमा यजाते ये मघवानोऽर्यः मन्युं सीक्षन्त क्षयायोरु सुधातु चक्रिरे त एव श्रीमन्तो जायन्ते ॥११॥

Word-Meaning: - (यः) (ब्रह्मणे) धनाय परमेश्वराय वा (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (आयजते) समन्ताद्यजेत सङ्गच्छेत (वाजस्य) विज्ञानस्य (सातौ) संविभागे (परमस्य) श्रेष्ठस्य (रायः) धनस्य (सीक्षन्त) सम्बध्नन्ति (मन्युम्) क्रोधम् (मघवानः) परमधनयुक्ताः (अर्यः) यथावज्ज्ञातारः (उरु) बहु (क्षयाय) निवासाय (चक्रिरे) कुर्वन्ति (सुधातु) शोभना धातवो यस्मिन् गृहे ॥११॥
Connotation: - ये मनुष्या ईश्वरविज्ञानायोत्तमधनलाभाय श्रेष्ठाय गृहाय क्रोधादिदोषान् विहाय प्रयतन्ते ते सर्वसुखा जायन्ते ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे ईश्वराच्या विज्ञानाने, उत्तम धनाच्या लाभाने व श्रेष्ठ गृहासाठी क्रोध वगैरे दोषांचा त्याग करतात व प्रयत्नशील बनतात ती संपूर्ण सुखी होतात. ॥ ११ ॥