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यस्य॒ शर्म॒न्नुप॒ विश्वे॒ जना॑स॒ एवै॑स्त॒स्थुः सु॑म॒तिं भिक्ष॑माणाः। वै॒श्वा॒न॒रो वर॒मा रोद॑स्यो॒राग्निः स॑साद पि॒त्रोरु॒पस्थ॑म् ॥६॥

English Transliteration

yasya śarmann upa viśve janāsa evais tasthuḥ sumatim bhikṣamāṇāḥ | vaiśvānaro varam ā rodasyor āgniḥ sasāda pitror upastham ||

Pad Path

यस्य॑। श॒र्म॒न्। उप॑। विश्वे॑। जना॑सः। एवैः॑। त॒स्थुः। सु॒ऽम॒तिम्। भिक्ष॑माणाः। वै॒श्वा॒न॒रः। वर॑म्। आ। रोद॑स्योः। आ। अ॒ग्निः। स॒सा॒द॒। पि॒त्रोः। उ॒पऽस्थ॑म् ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:6» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन राजा नित्य बढ़ता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो (यस्य) जिसके (शर्मन्) घर में (सुमतिम्) उत्तम बुद्धि की (भिक्षमाणाः) नित्य याचना करते हुए उन्नतिशील (एवैः) विज्ञानादि से प्राप्त हुए श्रेष्ठ गुणों के साथ वर्त्तमान (विश्वे) सब (जनासः) धर्मात्मा, उत्तम विद्वान् जन (उप, तस्थुः) उपस्थित होते हैं, जो (वैश्वानरः) समस्त मनुष्यों के बीच राजमान (रोदस्योः) सूर्य-पृथिवी के बीच (अग्निः) सूर्य के तुल्य स्थित हुए के समान (पित्रोः) उत्तम शिक्षा करनेवाले अध्यापक-उपदेशक के (उपस्थम्) समीप (वरम्) उत्तम जन को (आ, ससाद) अच्छे प्रकार स्थित करो, वही चक्रवर्ती राज्य कर सकता है ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वही राजा नित्य बढ़ता है, जिसके समीप विद्यावर्धक, विद्वान् मन्त्री सदा रहें। जो सत्यवक्ता के उपदेश को नित्य स्वीकार करता है, वह सूर्य के तुल्य भूगोल में प्रकाशमान होकर प्रशस्त राज्य को प्राप्त होता है ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः को राजा नित्यं वर्धत इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यस्य शर्मन् सुमतिं भिक्षमाणा एवैः सह वर्त्तमाना विश्वे जनास उपतस्थुर्यो वैश्वानरो रोदस्योरग्निरास्थित इव पित्रोरुपस्थं वरमा ससाद स एव साम्राज्यं कर्त्तुमर्हति ॥६॥

Word-Meaning: - (यस्य) (शर्मन्) गृहे (उप) (विश्वे) सर्वे (जनासः) उत्तमा धार्मिका विद्वांसः (एवैः) विज्ञानादिप्राप्तैः सद्गुणैस्सह (तस्थुः) तिष्ठन्ति (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (भिक्षमाणः) नित्यं याचमाना उन्नतिशीलाः (वैश्वानरः) विश्वेषां नराणां मध्ये राजमानः (वरम्) उत्तमं जनम् (आ) (रोदस्योः) द्यावापृथिव्योर्मध्ये (आ) (अग्निः) सूर्य इव (ससाद) सीदति (पित्रोः) सुशिक्षाकर्त्रोरध्यापकोपदेशकयोः (उपस्थम्) समीपम् ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। स एव राजा नित्यं वर्धते यस्य समीपे नित्यं विद्यावर्धका विद्वांसो मन्त्रिणस्स्युर्यो ह्याप्तोपदेशं नित्यं गृह्णाति स सूर्य इव भूगोले प्रकाशमानो भूत्वा प्रशस्तं राज्यं प्राप्नोति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याच्याजवळ नेहमी विद्येची वाढ करणारा विद्वान मंत्री असतो त्याच राजाची सदैव वृद्धी होते. जो सत्यवक्त्याचा उपदेश नित्य ग्रहण करतो, तो सूर्याप्रमाणे प्रकाशमान होऊन प्रशंसनीय राज्य करतो. ॥ ६ ॥