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न्य॑क्र॒तून्ग्र॒थिनो॑ मृ॒ध्रवा॑चः प॒णीँर॑श्र॒द्धाँ अ॑वृ॒धाँ अ॑य॒ज्ञान्। प्रप्र॒ तान्दस्यूँ॑र॒ग्निर्वि॑वाय॒ पूर्व॑श्चका॒राप॑राँ॒ अय॑ज्यून् ॥३॥

English Transliteration

ny akratūn grathino mṛdhravācaḥ paṇīm̐r aśraddhām̐ avṛdhām̐ ayajñān | pra-pra tān dasyūm̐r agnir vivāya pūrvaś cakārāparām̐ ayajyūn ||

Pad Path

नि। अ॒क्र॒तून्। ग्र॒थिनः॑। मृ॒ध्रऽवा॑चः। प॒णीन्। अ॒श्र॒द्धान्। अ॒वृ॒धान्। अ॒य॒ज्ञान्। प्रऽप्र॑। तान्। दस्यू॑न्। अ॒ग्निः। वि॒वा॒य॒। पूर्वः॑। च॒का॒र॒। अप॑रान्। अय॑ज्यून् ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:6» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों को कौन रोकने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे राजन् (अग्निः) अग्नि के तुल्य तेजोमय ! आप (अक्रतून्) निर्बुद्धि (ग्रथिनः) अज्ञान से बंधने (मृध्रवाचः) हिंसक वाणीवाले (अयज्ञान्) सङ्गादि वा अग्निहोत्रादि के अनुष्ठान से रहित (अश्रद्धान्) श्रद्धारहित (अवृधान्) हानि करनेहारे (तान्) उन (दस्यून्) दुष्ट साहसी चोरों को (प्रप्र, विवाय) अच्छे प्रकार दूर पहुँचाइये (पूर्वः) प्रथम से प्रवृत्त हुए आप (अपरान्) अन्य (अयज्यून्) विद्वानों के सत्कार के विरोधियों को (पणीन्) व्यवहारवाले (नि, चकार) निरन्तर करते हैं ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वानो ! तुम लोग सत्य के उपदेश और शिक्षा से सब अविद्वानों को बोधित करो, जिससे ये अन्यों को भी विद्वान् करें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्भिः के निरोद्धव्या इत्याह ॥

Anvay:

हे राजन्नग्निरिव ! भवानक्रतूनग्रथिनो मृध्रवाचोऽयज्ञानश्रद्धानवृधाँस्तान् दस्यून् प्रप्र विवाय पूर्वः सन्नपरानयज्यून् पणीन्नि चकार ॥३॥

Word-Meaning: - (नि) (अक्रतून्) निर्बुद्धीन् (ग्रथिनः) अज्ञानेन बद्धान् (मृध्रवाचः) मृध्रा हिंस्रा अनृता वाग्येषान्ते (पणीन्) व्यवहारिणः (अश्रद्धान्) श्रद्धारहितान् (अवृधान्) अवर्धकान् हानिकरान् (अयज्ञान्) सङ्गाद्यग्निहोत्राद्यनुष्ठानरहितान् (प्रप्र) (तान्) (दस्यून्) दुष्टान् साहसिकाँश्चोरान् (अग्निः) अग्निरिव राजा (विवाय) दूरं गमयति (पूर्वः) आदिमः (चकार) करोति (अपरान्) अन्यान् (अयज्यून्) विद्वत्सत्कारविरोधिनः ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! यूयं सत्योपदेशशिक्षाभ्यां सर्वानविदुषो बोधयन्तु यत एतेऽपरानपि विदुषः कुर्य्युः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो! तुम्ही सत्य उपदेश व शिक्षणाने सर्व अविद्वानांना बोधयुक्त करा. ज्यामुळे ते इतरांनाही विद्वान करतील. ॥ ३ ॥