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प्र सा वा॑चि सुष्टु॒तिर्म॒घोना॑मि॒दं सू॒क्तं म॒रुतो॑ जुषन्त। आ॒राच्चि॒द्द्वेषो॑ वृषणो युयोत यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥६॥

English Transliteration

pra sā vāci suṣṭutir maghonām idaṁ sūktam maruto juṣanta | ārāc cid dveṣo vṛṣaṇo yuyota yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

प्र। सा। वा॒चि॒। सु॒ऽस्तु॒तिः। म॒घोना॑म्। इ॒दम्। सु॒ऽउ॒क्तम्। म॒रुतः॑। जु॒ष॒न्त॒। आ॒रात्। चि॒त्। द्वेषः॑। वृ॒ष॒णः॒। यु॒यो॒त॒। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:58» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:28» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (वृषणः) बलयुक्त जनो ! (मघोनाम्) बहुत श्रेष्ठ धनवालों की (वाचि) वाणी में (सा) वह (सुष्टुतिः) सुन्दर प्रशंसा है (इदम्) इस (सूक्तम्) उत्तम वचन को (मरुतः) विद्वान् मनुष्य (प्र, जुषन्त) सेवन करें (सा) वह हम लोगों को सेवन करे (यूयम्) आप लोग (द्वेषः) करनेवालों को (आरात्) समीप से वा दूर से (चित्) भी (युयोत) पृथक् करिये और (स्वस्तिभिः) कल्याणों से (नः) हम लोगों की (सदा) सब काल में (पात) रक्षा कीजिये ॥६॥
Connotation: - जो मनुष्य सदा ही सत्य के कहनेवाले हों, वे ही स्तुति करनेवाले होवें, उन के साथ बल को बढ़ाय के सब शत्रुओं को दूर करके श्रेष्ठों की सदा रक्षा करो ॥६॥ इस सूक्त में वायु और विद्वान् के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अट्ठावनवाँ सूक्त और अट्ठाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे वृषणो ! मघोनां वाचि सा सुष्टुतिस्तदिदं सूक्तं मरुतः प्रजुषन्त साऽस्मान् जुषतां यूयं द्वेष आरात् दूरान्निकटाच्चिद्युयोत स्वस्तिभिर्नस्सदा पात ॥६॥

Word-Meaning: - (प्र) (सा) (वाचि) वाण्याम् (सुष्टुतिः) शोभना प्रशंसा (मघोनाम्) बहुपूजितधनानाम् (इदम्) (सूक्तम्) शोभनं वचनम् (मरुतः) विद्वांसो मनुष्याः (जुषन्त) सेवन्ताम् (आरात्) दूरात् समीपाद् वा (चित्) अपि (द्वेषः) द्वेष्टॄन् दुष्टान् शत्रून् मनुष्यान् (वृषणः) बलिष्ठाः (युयोत) पृथक्कुरुत (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) (सदा) (नः) ॥६॥
Connotation: - ये मनुष्यास्सदैव सत्यस्य वक्तारस्ते स्तावकाः स्युस्तैस्सह बलं वर्धयित्वा सर्वशत्रून् निवार्य श्रेष्ठान् सदा रक्षन्तु ॥६॥ अत्र मरुद्विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टपञ्चाशत्तमं सूक्तमष्टाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे सदैव सत्य बोलणारी असतात त्यांची स्तुती केली पाहिजे. त्यांच्या संगतीत बल वाढवून सर्व शत्रूंना दूर करून श्रेष्ठांचे सदैव रक्षण करावे. ॥ ६ ॥