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ऋध॒क्सा वो॑ मरुतो दि॒द्युद॑स्तु॒ यद्व॒ आगः॑ पुरु॒षता॒ करा॑म। मा व॒स्तस्या॒मपि॑ भूमा यजत्रा अ॒स्मे वो॑ अस्तु सुम॒तिश्चनि॑ष्ठा ॥४॥

English Transliteration

ṛdhak sā vo maruto didyud astu yad va āgaḥ puruṣatā karāma | mā vas tasyām api bhūmā yajatrā asme vo astu sumatiś caniṣṭhā ||

Pad Path

ऋध॑क्। सा। वः॒। म॒रु॒तः॒। दि॒द्युत्। अ॒स्तु॒। यत्। वः॒। आगः॑। पु॒रु॒षता॑। करा॑म। मा। वः॒। तस्या॑म्। अपि॑। भू॒म॒। य॒ज॒त्राः॒। अ॒स्मे इति॑। वः॒। अ॒स्तु॒। सु॒ऽम॒तिः। चनि॑ष्ठा ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:57» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:27» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को कैसा वर्ताव करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (यजत्राः) मेल करनेवाले (मरुतः) मनुष्यो ! (यत्) जिससे (वः) आप लोगों के (आगः) अपराध को और जिस (पुरुषता) पुरुषपने से (कराम) करें (तस्याम्) उसमें (अपि) भी (नः) आप लोगों के अपराध को (मा) नहीं करें और जिससे हम लोग पुरुषार्थी (भूम) होवें (सा) वह (वः) आप लोगों के (ऋधक्) सत्य में (चनिष्ठा) अतिशय अन्न आदि ऐश्वर्य्य से युक्त (सुमतिः) अच्छी बुद्धि (अस्मे) हम लोगों में (अस्तु) हो और वह (दिद्युत्) प्रकाशमान नीति (नः) आप लोगों की (अस्तु) हो ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! अन्याय से अपराध का परित्याग कर और सत्य बुद्धि को ग्रहण कर वे पुरुषार्थ से सुखी होओ ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः कथं वर्तितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे यजत्रा मरुतः ! यद्यया व आगो यद्यया पुरुषता कराम तस्यामपि च आगो मा कराम यया वयं पुरुषार्थिनो भूम सा व ऋधक्चनिष्ठा सुमतिरस्मे अस्तु सा विद्युद्वो युष्माकमस्तु ॥४॥

Word-Meaning: - (ऋधक्) सत्ये (सा) (वः) युष्माकम् (मरुतः) मनुष्याः (दिद्युत्) देदीप्यमाना नीतिः (अस्तु) (यत्) यथा (वः) युष्माकम् (आगः) अपराधम् (पुरुषता) पुरुषाणां भावेन पुरुषार्थतया (कराम) कुर्याम (मा) (वः) युष्मान् (तस्याम्) (अपि) (भूम) भवेम। अत्र द्व्यचो० इति दीर्घः। (यजत्राः) सङ्गन्तारः (अस्मे) अस्मासु (वः) युष्माकम् (अस्तु) (सुमतिः) शोभना प्रज्ञा (चनिष्ठा) अतिशयेनान्नाद्यैश्वर्ययुक्ता ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! अन्यायापराधं विहाय सत्यां प्रज्ञां गृहीत्वा पुरुषार्थेन सह सुखिनो भवत ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! अन्याय, अपराध सोडून द्या व सत्य बुद्धी ग्रहण करून पुरुषार्थाने सुखी व्हा ॥ ४ ॥