Go To Mantra

अ॒भि स्व॒पूभि॑र्मि॒थो व॑पन्त॒ वात॑स्वनसः श्ये॒ना अ॑स्पृध्रन् ॥३॥

English Transliteration

abhi svapūbhir mitho vapanta vātasvanasaḥ śyenā aspṛdhran ||

Pad Path

अ॒भि। स्व॒ऽपूभिः॑। मि॒थः। व॒प॒न्त॒। वात॑ऽस्वनसः। श्ये॒नाः। अ॒स्पृ॒ध्र॒न् ॥३॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:56» Mantra:3 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:23» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:3


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो गृहस्थ पुरुष (वातस्वनसः) पवन के शब्द के समान जिनका शब्द है वे (श्येनाः) वाज के समान पराक्रमी (स्वपूभिः) सोते हुए अर्थात् अप्रसिद्ध अपने पवित्र आचरणों के साथ (मिथः) परस्पर (वपन्त) बोते (अभि, अस्पृध्रन्) और सम्मुख स्पर्द्धा करते हैं, वे श्रेष्ठ ऐश्वर्यवाले होते हैं ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो गृहस्थ परस्पर सत्याचरणानुष्ठान से गम्भीर आशयवाले पराक्रमी होकर सब की उन्नति करना चाहते हैं, वे पूजित होते हैं ॥३॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

ये गृहस्था वातस्वनसः श्येना इव वर्त्तमानाः स्वपूभिर्मिथो वपन्ताभ्यस्पृध्रन् ते श्रेष्ठैश्वर्या जायन्ते ॥३॥

Word-Meaning: - (अभि) आभिमुख्ये (स्वपूभिः) शयानैस्स्वकीयैः पवित्राचरणैः सह (मिथः) अन्योन्यम् (वपन्त) वपन्ति (वातस्वनसः) वातस्य स्वनः शब्द इव शब्दो येषान्ते (श्येनाः) श्येन इव पराक्रमिणः (अस्पृध्रन्) स्पर्धन्ते ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये गृहस्थाः परस्परं सत्याचरणानुष्ठानेन गम्भीराशयाः पराक्रमिणो भूत्वा सर्वस्योन्नतिं चिकीर्षन्ति तेऽभिपूजिता भवन्ति ॥३॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे गृहस्थ परस्पर सत्याचरणाने वागतात, गंभीर आशय धारण करतात, पराक्रमी असतात, सर्वांची उन्नती करू इच्छितात ते पूजनीय ठरतात. ॥ ३ ॥