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सं यद्धन॑न्त म॒न्युभि॒र्जना॑सः॒ शूरा॑ य॒ह्वीष्वोष॑धीषु वि॒क्षु। अध॑ स्मा नो मरुतो रुद्रियासस्त्रा॒तारो॑ भूत॒ पृत॑नास्व॒र्यः ॥२२॥

English Transliteration

saṁ yad dhananta manyubhir janāsaḥ śūrā yahvīṣv oṣadhīṣu vikṣu | adha smā no maruto rudriyāsas trātāro bhūta pṛtanāsv aryaḥ ||

Pad Path

सम्। यत्। हन॑न्त। म॒न्युऽभिः॑। जना॑सः। शूराः॑। य॒ह्वीषु॑। ओष॑धीषु। वि॒क्षु। अध॑। स्म॒। नः॒। म॒रु॒तः॒। रु॒द्रि॒या॒सः॒। त्रा॒तारः॑। भू॒त॒। पृत॑नासु। अ॒र्यः ॥२२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:56» Mantra:22 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:26» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:4» Mantra:22


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे वीर कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (मरुतः) पवनों के समान ! (यत्) जो (रुद्रियासः) रुद्र के समान आचरण करनेवाले (जनासः) प्रसिद्ध (शूराः) निर्भय मनुष्यो ! (मन्युभिः) क्रोधादिकों से शत्रुओं को (संयत्) संग्राम में (हनन्त) मारिये (अध) इसके अनन्तर (यह्वीषु) बहुत बड़ी (ओषधीषु) ओषधियों में और (विक्षु) प्रजाओं में (पृतनासु) शूरवीरों की सेनाओं में (स्म) निश्चित (नः) हमारे (त्रातारः) रक्षा करनेवाले (भूत) हूजिये जो (वः) तुम्हारा (अर्यः) स्वामी है, उसकी भी रक्षा करनेवाले हूजिये ॥२२॥
Connotation: - जो वीरजन शत्रुओं को मारनेवाले, प्रजाओं के रक्षक और बड़ी-बड़ी ओषधियों में चतुर हैं, उनको स्वामी राजा प्रीति से रक्खें ॥२२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते वीराः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे मरुतो यद्ये रुद्रियासो जनासः शूरा मनुष्या ! मन्युभिश्शत्रून् संयत् हनन्ताध यह्वीष्वोषधीषु विक्षु पृतनासु स्म नस्त्रातारो भूत यो युष्माकमर्यः स्वामी तस्यापि त्रातारो भवत ॥२२॥

Word-Meaning: - (संयत्) (हनन्त) घ्नन्ति (मन्युभिः) क्रोधादिभिः (जनासः) जनाः प्रसिद्धाः (शूराः) निर्भयाः (यह्वीषु) महतीषु (ओषधीषु) (विक्षु) प्रजासु च (अध) अथ (स्मा) एव। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नः) युष्माकम् (मरुतः) वायव इव मनुष्याः (रुद्रियासः) रुद्र इवाचरन्तः (त्रातारः) रक्षकाः (भूत) भवत (पृतनासु) शूरवीरमनुष्यसेनासु (अर्यः) स्वामी ॥२२॥
Connotation: - ये वीराः शत्रूणां हन्तारः प्रजानां रक्षका महौषधीषु चतुरास्सन्ति तान् स्वामी राजा प्रीत्या रक्षेत् ॥२२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे वीर शत्रूंचे मारक, प्रजेचे रक्षक, अनेक महान औषधींमध्ये चतुर असतील त्यांना राजाने प्रेमाने ठेवावे. ॥ २२ ॥