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त्वाम॑ग्ने ह॒रितो॑ वावशा॒ना गिरः॑ सचन्ते॒ धुन॑यो घृ॒ताचीः॑। पतिं॑ कृष्टी॒नां र॒थ्यं॑ रयी॒णां वै॑श्वान॒रमु॒षसां॑ के॒तुमह्ना॑म् ॥५॥

English Transliteration

tvām agne harito vāvaśānā giraḥ sacante dhunayo ghṛtācīḥ | patiṁ kṛṣṭīnāṁ rathyaṁ rayīṇāṁ vaiśvānaram uṣasāṁ ketum ahnām ||

Pad Path

त्वाम्। अ॒ग्ने॒। ह॒रितः॑। वा॒व॒शा॒नाः। गिरः॑। स॒च॒न्ते॒। धुन॑यः। घृ॒ताचीः॑। पति॑म्। कृ॒ष्टी॒नाम्। र॒थ्य॑म्। र॒यी॒णाम्। वै॒श्वा॒न॒रम्। उ॒षसा॑म्। के॒तुम्। अह्ना॑म् ॥५॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:5» Mantra:5 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:7» Mantra:5 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (अग्ने) ज्ञानस्वरूप जगदीश्वर ! जिस (त्वाम्) आपको (हरितः) दिशा (वावशानाः) कामना के योग्य (गिरः) वाणी (धुनयः) वायु और (घृताचीः) रात्री (सचन्ते) सम्बन्ध करते हैं उस (रयीणाम्) धनों के (रथ्यम्) पहुँचानेवाले घोड़े के तुल्य रथों के हितकारी (उषसाम्) प्रभात वेलाओं के बीच (वैश्वानरम्) अग्नि के तुल्य प्रकाशित (अह्नाम्) दिनों के बीच (केतुम्) सूर्य के तुल्य (कृष्टीनाम्) मनुष्यों के (पतिम्) रक्षक स्वामी आपका हम लोग निरन्तर सेवन करें ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस में सब दिशा, वेदवाणी, पवन और रात्री आदि काल के अवयव सम्बद्ध हैं, उसी समग्र ऐश्वर्य के देनेवाले सूर्य के तुल्य स्वयं प्रकाशित परमात्मा का नित्य ध्यान करो ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

Anvay:

हे अग्ने जगदीश्वर ! यं त्वां हरितो वावशाना गिरो धुनयो घृताचीश्च सचन्ते तं रयीणां रथ्यमिवोषसां वैश्वानरमह्नां केतुमिव कृष्टीनां पतिं त्वां वयं सततं भजेम ॥५॥

Word-Meaning: - (त्वाम्) परमात्मानम् (अग्ने) ज्ञानस्वरूप (हरितः) दिशः। हरित इति दिङ्नाम। (निघं०१.६) (वावशानाः) कमनीयाः (गिरः) वाचः (सचन्ते) (धुनयः) वायवः (घृताचीः) रात्रयः। घृताचीति रात्रिनाम। (निघं०१.७)। (पतिम्) स्वामिनं पालकम् (कृष्टीनाम्) मनुष्याणाम्। कृष्टय इति मनुष्यनाम। (निघं०२.३)। (रथ्यम्) रथेभ्यो हितमश्वमिव प्रापकं (रयीणाम्) धनानाम् (वैश्वानरम्) अग्निमिव (उषसाम्) प्रभातवेलानाम् (केतुम्) सूर्यमिव (अह्नाम्) दिनानाम् ॥५॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यस्मिन् सर्वा दिशो वेदवाचः पवना रात्र्यादयः कालावयवाः सम्बद्धाः सन्ति तमेव समग्रैश्वर्यप्रदं सूर्य इव स्वप्रकाशं परमात्मानं नित्यं ध्यायत ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! ज्याच्यामध्ये सर्व दिशा, वेदवाणी, वायू व रात्र इत्यादी काळाचे अवयव संबंधित असतात त्याच ऐश्वर्य देणाऱ्या सूर्याप्रमाणे संपूर्ण स्वयंप्रकाशित परमात्म्याचे नित्य ध्यान करा. ॥ ५ ॥