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यासु॒ राजा॒ वरु॑णो॒ यासु॒ सोमो॒ विश्वे॑ दे॒वा यासूर्जं॒ मद॑न्ति। वै॒श्वा॒न॒रो यास्व॒ग्निः प्रवि॑ष्ट॒स्ता आपो॑ दे॒वीरि॒ह माम॑वन्तु ॥४॥

English Transliteration

yāsu rājā varuṇo yāsu somo viśve devā yāsūrjam madanti | vaiśvānaro yāsv agniḥ praviṣṭas tā āpo devīr iha mām avantu ||

Pad Path

यासु॑। राजा॑। वरु॑णः। यासु॑। सोमः॑। विश्वे॑। दे॒वाः। यासु॑। ऊर्ज॑म्। मद॑न्ति। वै॒श्वा॒न॒रः। यासु॑। अ॒ग्निः। प्रऽवि॑ष्टः। ताः। आपः॑। दे॒वीः। इ॒ह। माम्। अ॒व॒न्तु॒ ॥४॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:49» Mantra:4 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:16» Mantra:4 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (यासु) जिन अन्तरिक्ष जल वा प्राणों में (वरुणः) श्रेष्ठ गुण-कर्म-स्वभावयुक्त (राजा) न्याय और विनय नम्रता से प्रकाशमान (यासु) वा जिन में (सोमः) ओषधिगण और (यासु) जिन में (विश्वे) समस्त (देवाः) विद्वान् जन अथवा पृथिवी आदि लोक (ऊर्जम्) बल पराक्रम को (मदन्ति) प्राप्त होते हैं या (यासु) जिन में (वैश्वानरः) सब में वा मनुष्यों में प्रकाशमान परमात्मा वा (अग्निः) बिजुलीरूप अग्नि (प्रविष्टः) प्रविष्ट है (ताः) वे (देवीः) मनोहर (आपः) जल (इह) इस संसार में (माम्) मेरी (अवन्तु) रक्षा करें ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जिस आकाश में, प्राणों में वा जल में सब जगत् जीवन धारण करता है वा जिन प्राणों में स्थित योगी जन परमात्मा को प्राप्त होता है वा जहाँ बिजुली प्रविष्ट है, उन जलों को तुम जान कर रक्षायुक्त होओ ॥४॥ इस सूक्त में जलादि कों के गुण और कृत्यों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह उनपचासवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यास्वप्सु वरुणो राजा यासु सोमो यासु विश्वेदेवाश्चोर्जं मदन्ति यासु वैश्वानरोऽग्निः प्रविष्टस्ता देवीराप इह मामवन्तु तथा बोधयत ॥४॥

Word-Meaning: - (यासु) अन्तरिक्षे जलेषु प्राणेषु वा (राजा) न्यायविनयाभ्यां प्रकाशमानः (वरुणः) श्रेष्ठगुणकर्मस्वभावः (यासु) (सोमः) ओषधिगणः (विश्वे) सर्वे (देवाः) विद्वांसः पृथिव्यादयो वा (यासु) (ऊर्जम्) बलं पराक्रमम् (मदन्ति) प्राप्नुवन्ति (वैश्वानरः) विश्वेषु नरेषु वा राजमानः परमात्मा (यासु) (अग्निः) विद्युत् (प्रविष्टः) (ताः) (आपः) (देवीः) कमनीयाः (इह) अस्मिन् संसारे (माम्) (अवन्तु) ॥४॥
Connotation: - हे मनुष्या ! यस्मिन्नाकाशे प्राणेषु जले वा सर्वं जगज्जीवति येषु प्राणेषु स्थितो योगी परमात्मानं लभते यत्र विद्युत्प्रविष्टाऽस्ति ता अपो यूयं विज्ञाय रक्षिता भवतेति ॥४॥ अत्राबादिगुणकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्येकोनपञ्चाशत्तमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो! ज्या आकाशात, प्राणात किंवा जलात सर्व जग जीवन जगते किंवा ज्या प्राणात स्थित योगी परमेश्वराला प्राप्त करतो किंवा जेथे विद्युत असते त्या जलाला तुम्ही जाणा व रक्षणयुक्त व्हा. ॥ ४ ॥