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तमू॒र्मिमा॑पो॒ मधु॑मत्तमं वो॒ऽपां नपा॑दवत्वाशु॒हेमा॑। यस्मि॒न्निन्द्रो॒ वसु॑भिर्मा॒दया॑ते॒ तम॑श्याम देव॒यन्तो॑ वो अ॒द्य ॥२॥

English Transliteration

tam ūrmim āpo madhumattamaṁ vo pāṁ napād avatv āśuhemā | yasminn indro vasubhir mādayāte tam aśyāma devayanto vo adya ||

Pad Path

तम्। ऊ॒र्मिम्। आ॒पः॒। मधु॑मत्ऽतमम्। वः॒। अ॒पाम्। नपा॑त्। अ॒व॒तु॒। आ॒शु॒ऽहेमा॑। यस्मि॑न्। इन्द्रः॑। वसु॑ऽभिः। मा॒दया॑ते। तम्। अ॒श्या॒म॒। दे॒व॒ऽयन्तः॑। वः॒। अ॒द्य ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:47» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:14» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! (यस्मिन्) जिसमें (आशुहेमा) शीघ्र बढ़ने वा जानेवाला (इन्द्रः) बिजुली के समान राजा (वसुभिः) धनों के साथ (वः) तुमको (मादयाते) हर्षित करे (तम्) उसको (आपः) जल (उर्मिम्) तरङ्गों को जैसे वैसे (मधुमत्तमम्) अतीव मधुरादिगुणयुक्त पदार्थ को (अपांनपात्) जो जलों के बीच नहीं गिरता है वह बिजुली के समान राजा जैसे (अवतु) रक्खे, वैसे हम लोग (तम्) उसको रक्खें और (वः) तुम लोगों की (देवयन्तः) कामना करते हुए हम लोग (अद्य) आज (अश्याम) प्राप्त होवें ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे वायु जल को तरङ्गों को उछालता है, वैसे जो राजा धनादिकों से प्रजाजनों की रक्षा करे, उसी को हम लोग राजा होने की सम्मति देवें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यस्मिन्नाशुहेमेन्द्रो वसुभिस्सह वो युष्मान् मादयाते तमाप ऊर्मिमिव मधुमत्तममपांनपादिन्द्रो यथाऽवतु तथा वयं तं रक्षेम वो देवयन्तो वयमद्याश्याम ॥२॥

Word-Meaning: - (तम्) (ऊर्मिम्) तरङ्गम् (आपः) जलानीव (मधुमत्तमम्) अतिशयेन मधुरादिगुणयुक्तम् (वः) युष्मान् (अपाम्) जलानाम् (नपात्) यो न पतति (अवतु) रक्षतु (आशुहेमा) शीघ्रं वर्धको गन्ता वा (यस्मिन्) (इन्द्रः) विद्युदिव राजा (वसुभिः) धनैः (मादयाते) मादयेः हर्षयेत् (तम्) (अश्याम) प्राप्नुयाम (देवयन्तः) कामयमानाः (वः) युष्माकम् (अद्य) इदानीम् ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वायुरपान्तरङ्गानुच्छयति तथा यो राजा धनादिभिः प्रजाजनान् रक्षेत् तस्यैव वयं राजत्वाय सम्मतिं दद्याम ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा वायू जलाच्या तरंगामध्ये हालचाल उत्पन्न करतो तसे जो राजा धन इत्यादींनी प्रजेचे रक्षण करतो त्यालाच आम्ही राजा या नात्याने मान्य करावे. ॥ २ ॥