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ए॒वाग्निं स॑ह॒स्यं१॒॑ वसि॑ष्ठो रा॒यस्का॑मो वि॒श्वप्स्न्य॑स्य स्तौत्। इषं॑ र॒यिं प॑प्रथ॒द्वाज॑म॒स्मे यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥६॥

English Transliteration

evāgniṁ sahasyaṁ vasiṣṭho rāyaskāmo viśvapsnyasya staut | iṣaṁ rayim paprathad vājam asme yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

ए॒व। अ॒ग्निम्। स॒ह॒स्य॑म्। वसि॑ष्ठः। रा॒यःऽका॑मः। वि॒श्वऽप्स्न्य॑स्य। स्तौ॒त्। इष॑म्। र॒यिम्। प॒प्र॒थ॒त्। वाज॑म्। अ॒स्मे इति॑। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:42» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:9» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

धन की कामना करनेवाले क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (रायस्कामः) धन की कामनावाला (वसिष्ठः) अतीव निवासकर्ता जन (विश्वप्स्न्यस्य) समग्र रूपों में और (सहस्यम्) बल में हुए (अग्निम्) अग्नि की (स्तौत्) स्तुति करता है (एव) वही (अस्मे) हमारी (इषम्) अन्नादि सामग्री (रयिम्) लक्ष्मी (वाजम्) विज्ञान वा अन्न को (पप्रथत्) प्रसिद्ध करता है, हे अतिथि जनो ! (यूयम्) तुम (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हम लोगों की (सदा) सदैव (पात) रक्षा करो ॥६॥
Connotation: - जिसको धन की कामना हो, वह मनुष्य अग्न्यादि विद्या को ग्रहण करे, जो अतिथियों की सेवा करते हैं, उनको अतिथि लोग अधर्म के आचरण से सदा अलग रखते हैं ॥६॥ इस सूक्त में विश्वेदेवों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बयालीसवाँ सूक्त और नवम वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

धनकामाः पुरुषाः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

यो रायस्कामो वसिष्ठो विश्वप्स्न्यस्य सहस्यमग्निं स्तौत् स एवास्मे इषं रयिं वाजं पप्रथत्, हे अतिथयः ! यूयं स्वस्तिभिर्नोऽस्मान् सदा पात ॥६॥

Word-Meaning: - (एव) (अग्निम्) पावकम् (सहस्यम्) सहसि भवम् (वसिष्ठः) अतिशयेन वसुः (रायस्कामः) रायो धनस्य काम इच्छा यस्य सः (विश्वप्स्न्यस्य) विश्वेषु समग्रेषु स्नुषु स्वरूपेषु भवस्य (स्तौत्) स्तौति (इषम्) अन्नादिकम् (रयिम्) श्रियम् (पप्रथत्) प्रथयति (वाजम्) विज्ञानमन्नं वा (अस्मे) अस्माकम् (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) (सदा) (नः) ॥६॥
Connotation: - यस्य धनस्य कामना स्यात् स मनुष्योऽग्न्यादिविद्यां गृह्णीयात् येऽतिथिसेवां कुर्वन्ति तानतिथयोऽधर्माचरणात् पृथक्सदा रक्षन्तीति ॥६॥ अत्र विश्वेदेवगुणकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्विचत्वारिंशत्तमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ ः ज्याला ध्नाची कामना असेल त्या माणसाने अग्निविद्या ग्रहण करावी, जे अतिथींची सेवा करतात त्यांना अतिथी ग्रहण करावी. जे अतिथींची सेवा करतात त्यांना अतिथी सदैव अधर्माच्या आचरणापासून दूर ठेवतात. ॥ ६ ॥