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प्रा॒त॒र्जितं॒ भग॑मु॒ग्रं हु॑वेम व॒यं पु॒त्रमदि॑ते॒र्यो वि॑ध॒र्ता। आ॒ध्रश्चि॒द्यं मन्य॑मानस्तु॒रश्चि॒द्राजा॑ चि॒द्यं भगं॑ भ॒क्षीत्याह॑ ॥२॥

English Transliteration

prātarjitam bhagam ugraṁ huvema vayam putram aditer yo vidhartā | ādhraś cid yam manyamānas turaś cid rājā cid yam bhagam bhakṣīty āha ||

Pad Path

प्रा॒तः॒ऽजित॑म्। भग॑म्। उ॒ग्रम्। हु॒वे॒म॒। व॒यम्। पु॒त्रम्। अदि॑तेः। यः। वि॒ऽध॒र्ता। आ॒ध्रः। चि॒त्। यम्। मन्य॑मानः। तु॒रः। चि॒त्। राजा॑। चि॒त्। यम्। भग॑म्। भ॒क्षि॒। इति॑। आह॑ ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:41» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:8» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (अदितेः) अन्तरिक्षस्थ भूमि वा प्रकाश का (विधर्ता) वा विविध लोकों का धारण करनेवाला (आध्रः, चित्) जो सब ओर से धारण सा किया जाता (मन्यमानः) जानता हुआ (तुरः) शीघ्रकारी (राजा) प्रकाशमान (चित्) निश्चय से परमात्मा (यम्) जिस (भगम्) ऐश्वर्य्य की प्राप्ति होने को (आह) उपदेश देता है, जिसकी प्रेरणा पाये हुए (वयम्) हम लोग (पुत्रम्) पुत्र के समान (प्रातर्जितम्) प्रातःकाल ही उत्तमता से प्राप्त होने को योग्य (उग्रम्) तेजोमय तेज भरे हुए (भगम्) ऐश्वर्य्य को (हुवेम) कहें (इति) इस प्रकार (यम्, चित्) जिस को निश्चय से मैं (भक्षि) सेवूँ, उसकी सब उपासना करें ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। मनुष्यों को चाहिये कि प्रातः समय उठकर सब के आधार परमेश्वर का ध्यान कर सब करने योग्य कामों को नाना प्रकार से चिंतवन कर धर्म और पुरुषार्थ से पाये हुए ऐश्वर्य को भोगें वा भुगावें, यह ईश्वर उपदेश देता है ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! योऽदितेर्विधर्ताऽऽध्रश्चिन्मन्यमानस्तुरो राजा चिदिव परमात्मा यं भगं प्राप्तुमाह यत्प्रेरिता वयं पुत्रमिव प्रातर्जितमुग्रं भगं हुवेमेति यं चिदहं भक्षि तं सर्व उपासीरन् ॥२॥

Word-Meaning: - (प्रातर्जितम्) प्रातरेव जेतुमुत्कर्षयितुं योग्यम् (भगम्) ऐश्वर्यम् (उग्रम्) तेजोमयम् (हुवेम) शब्दयेम (वयम्) (पुत्रम्) पुत्रमिव वर्तमानम् (अदितेः) अन्तरिक्षस्थाया भूमेः प्रकाशस्य वा (यः) (विधर्ता) विविधानां लोकानां धर्ता (आध्रः) यः सर्वैस्समन्ताद् ध्रियते (चित्) अपि (यम्) (मन्यमानः) विजानन् (तुरः) शीघ्रकारी (चित्) इव (राजा) प्रकाशमानः (चित्) अपि (यम्) (भगम्) ऐश्वर्यम् (भक्षि) भजेयं सेवेय (इति) अनेन प्रकारेण (आह) उपदिशतीश्वरः ॥२॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। मनुष्यैः प्रातरुत्थाय सर्वाधारं परमेश्वरं ध्यात्वा सर्वाणि कर्तव्यानि कार्याणि विचिन्त्य धर्मेण पुरुषार्थेन प्राप्तमैश्वर्यं भोक्तव्यं भोजयितव्यमितीश्वर उपदिशति ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. माणसांनी प्रातःकाळी उठून सर्वांचा आधार असलेला परमेश्वराचे ध्यान करून व करण्यायोग्य काम करून विविध प्रकारचे चिंतन करून धर्म व पुरुषार्थाने प्राप्त झालेले ऐश्वर्य भोगावे व भोगवावे. हा ईश्वराचा उपदेश आहे. ॥ २ ॥