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नू रोद॑सी अ॒भिष्टु॑ते॒ वसि॑ष्ठैर्ऋ॒तावा॑नो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॒ग्निः। यच्छ॑न्तु च॒न्द्रा उ॑प॒मं नो॑ अ॒र्कं यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥७॥

English Transliteration

nū rodasī abhiṣṭute vasiṣṭhair ṛtāvāno varuṇo mitro agniḥ | yacchantu candrā upamaṁ no arkaṁ yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

नु। रोद॑सी॒ इति॑। अ॒भिस्तु॑ते॒ इत्य॒भिऽस्तु॑ते। वसि॑ष्ठैः। ऋ॒तऽवा॑नः। वरु॑णः। मि॒त्रः। अ॒ग्निः। यच्छ॑न्तु। च॒न्द्राः। उ॒प॒ऽमम्। नः॒। अ॒र्कम्। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥७॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:40» Mantra:7 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:7» Mantra:7 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर पढ़ाने और उपदेश करनेवाली स्त्रियाँ क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो पढ़ाने और उपदेश करनेवाली (रोदसी) आकाश और पृथिवी के समान (अभिष्टुते) सामने पढ़ाती वा उपदेश करती वे (वसिष्ठैः) अतीव धनाढ्यों के साथ जैसे (मित्रः) मित्र के समान प्यारे आचरण करनेवाला (वरुणः) जल के समान शान्ति देनेवाला और (अग्निः) अग्नि के समान प्रकाशित यश जन तथा (चन्द्राः) आनन्द देनेवाले (नः) हमारे लिये (उपमम्) उपमा जिस को दी जाती उस को अतीव सिद्ध करानेवाले (अर्कम्) सत्कार करने योग्य धन धान्य को (नु) शीघ्र (यच्छन्तु) देवें, वैसे हम लोगों को (ऋतावानः) सत्य की प्रकाश करनेवाली कन्या जन निरन्तर विद्या देवें, हे विदुषी स्त्रियो ! (यूयम्) तुम (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हम लोगों की (सदा) सर्वदैव (पात) रक्षा करो ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो भूमि के तुल्य क्षमाशील, लक्ष्मी के तुल्य शोभती हुई, जल के तुल्य शान्त, सहेली के तुल्य उपकार करनेवाली विदुषी पढ़ानेवाली हों, वे सब कन्याओं को पढ़ा के और सब स्त्रियों को उपदेश से आनन्दित करें ॥७॥ इस सूक्त में विश्वेदेवों के गुण और कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चालीसवाँ सूक्त और सातवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरध्यापकोपदेशिकाः स्त्रियः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

ये अध्यापकोपदेशिके रोदसी इवाभिष्टुते वसिष्ठैस्सह यथा मित्रो वरुण अग्निश्च चन्द्रा न उपममर्कं न यच्छन्तु तथाऽस्मानृतावानः कन्या सततं विद्याः प्रयच्छन्तु हे विदुष्यः स्त्रियो ! यूयं स्वस्तिभिर्नः सदा पात ॥७॥

Word-Meaning: - (नु) क्षिप्रम्। अत्र ऋचि तुनुघेति दीर्घः। (रोदसी) द्यावापृथिव्या इव (अभिष्टुते) आभिमुख्येनाध्यापयन्त्यावुपदिशन्त्यावध्यापकोपदेशिके (वसिष्ठैः) अतिशयेन धनाढ्यैः सह (ऋतावानः) सत्यस्य प्रकाशिकाः (वरुणः) जलमिव शान्तिप्रदः (मित्रः) सखेव प्रियाचारः (अग्निः) पावक इव प्रकाशितयशाः (यच्छन्तु) ददतु (चन्द्राः) आनन्ददाः (उपमम्) उपमेयसाधकतमम् (नः) अस्मभ्यम् (अर्कम्) सत्कर्तव्यं धनधान्यम् (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) (सदा) (नः) ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। या भूमिवत् क्षमाशीलाः श्रीवच्छोभमाना जलवच्छान्ताः सखीवदुपकारिण्यः विदुष्योऽध्यापिका स्युस्ताः सकलाः कन्या अध्यापनेन सर्वास्त्रियश्चोपदेशेनान्दयन्त्विति ॥७॥ अत्र विश्वेदेवगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चत्वारिंशत्तमं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या भूमीप्रमाणे क्षमाशील, लक्ष्मीप्रमाणे सुशोभित, जलाप्रमाणे शांत, मैत्रिणीप्रमाणे उपकारक विदुषी स्त्रिया अध्यापिका असतात त्या कन्यांना अध्यापन करून सर्व स्त्रियांना उपदेश करून आनंदित करतात. ॥ ७ ॥