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मात्र॑ पूषन्नाघृण इरस्यो॒ वरू॑त्री॒ यद्रा॑ति॒षाच॑श्च॒ रास॑न्। म॒यो॒भुवो॑ नो॒ अर्व॑न्तो॒ नि पा॑न्तु वृ॒ष्टिं परि॑ज्मा॒ वातो॑ ददातु ॥६॥

English Transliteration

mātra pūṣann āghṛṇa irasyo varūtrī yad rātiṣācaś ca rāsan | mayobhuvo no arvanto ni pāntu vṛṣṭim parijmā vāto dadātu ||

Pad Path

मा। अत्र॑। पू॒ष॒न्। आ॒घृ॒णे॒। इ॒र॒स्यः॒। वरू॑त्री। यत्। रा॒ति॒ऽसाचः॑। च॒। रास॑न्। म॒यः॒ऽभुवः॑। नः॒। अर्व॑न्तः। नि। पा॒न्तु॒। वृ॒ष्टिम्। परि॑ऽज्मा। वातः॑। द॒दा॒तु॒ ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:40» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:7» Mantra:6 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् जन क्या करते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (आघृणे) सब ओर से प्रकाशित (पूषन्) पुष्टि करनेवाले ! जैसे (परिज्मा) सब ओर से जो जाता है वह (वातः) वायु (वृष्टिम्) वर्षा को (ददातु) देवे वैसे (मयोभुवः) श्रेष्ठता हुवानेवाले (अर्वन्तः) प्राप्त होते हुए (रातिषाचः) दानकर्ता जन (नः) हम लोगों की (नि, पान्तु) निरन्तर रक्षा करें और (यत्) जो (वरूत्री) स्वीकार करने योग्य विद्या है (च) उस को भी (रासन्) देते हैं, वैसे (इरस्यः) प्राप्त होने योग्य आप करें (मा) और मत (अत्र) इस जगत् में विद्वेषी होओ ॥६॥
Connotation: - जो विद्वान् जन श्रेष्ठ जनों के तुल्य वर्त कर सब के लिये सुख वा विद्या देते हैं, वे सब के सब ओर से रक्षक हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वांसः किं कुर्वन्तीत्याह ॥

Anvay:

हे आघृणे पूषन् ! यथा परिज्मा वातो वृष्टिं ददातु तथा मयोभुवोऽर्वन्तो रातिषाच आप्ता नो नि पान्तु यद्या वरूत्री वरणीया विद्यास्ति तां च रासन् तथेरस्यस्त्वं कुर्याः माऽत्र विद्वेषी भवेः ॥६॥

Word-Meaning: - (मा) (अत्र) अस्मिन् (जगति) (पूषन्) पुष्टिकर्तः (आघृणे) सर्वतो दीप्ते (इरस्यः) प्राप्तुं योग्यः (वरूत्री) वर्तुमर्हा (यत्) याः (रातिषाचः) दानकर्तारः (च) (रासन्) प्रयच्छन्ति (मयोभुवः) शुभं भावुकाः (नः) अस्मान् (अर्वन्तः) प्राप्नुवन्तः (नि) नितराम् (पान्तु) रक्षन्तु (वृष्टिम्) (परिज्मा) यः परितस्सर्वतो गच्छति सः (वातः) वायुः (ददातु) ॥६॥
Connotation: - ये विद्वांस आप्तवद्वर्तित्वा सर्वेभ्यः सुखं विद्यां च प्रयच्छन्ति ते सर्वाभिरक्षकास्सन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्वान लोक श्रेष्ठाप्रमाणे वर्तन करून सर्वांना सुख व विद्या देतात ते सर्वांचे सगळीकडून रक्षक असतात. ॥ ६ ॥