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मि॒त्रस्तन्नो॒ वरु॑णो॒ रोद॑सी च॒ द्युभ॑क्त॒मिन्द्रो॑ अर्य॒मा द॑दातु। दिदे॑ष्टु दे॒व्यदि॑ती॒ रेक्णो॑ वा॒युश्च॒ यन्नि॑यु॒वैते॒ भग॑श्च ॥२॥

English Transliteration

mitras tan no varuṇo rodasī ca dyubhaktam indro aryamā dadātu | dideṣṭu devy aditī rekṇo vāyuś ca yan niyuvaite bhagaś ca ||

Pad Path

मि॒त्रः। तत्। नः॒। वरु॑णः। रोद॑सी॒ इति॑। च॒। द्युऽभ॑क्तम्। इन्द्रः॑। अ॒र्य॒मा। द॒दा॒तु। दिदे॑ष्टु। दे॒वी। अदि॑तिः। रेक्णः॑। वा॒युः। च॒। यत्। नि॒यु॒वैते॒ इति॑ नि॒ऽयु॒वैते॑। भगः॑। च॒ ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:40» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:7» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - जो (रोदसी) आकाश और पृथिवी के समान (मित्रः) मित्र (अर्यमा) न्यायकारी (इन्द्रः) परम ऐश्वर्यवान् राजा (वरुणः) जलसमूह (वायुः) और पवन (च) भी (द्युभक्तम्) जो प्रकाश को सेवता है (तत्) उस को (नः) हम लोगों के लिये (ददातु) देओ और (देवी) विदुषी (अदितिः) स्वरूप से अखण्डित (भगः) और ऐश्वर्यवान् (च) भी (यत्) जिस (रेक्णः) अधिक धन को (नियुवैते) निरन्तर जोड़े उस का विद्वान् जन हमें (च) भी (दिदेष्टु) उपदेश करें ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । मनुष्य सर्वदा पुरुषार्थ से सब को ऐश्वर्ययुक्त करावें ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

Anvay:

ये रोदसीव मित्रोऽर्यमेन्द्रो वरुणो वायुश्च द्युभक्तं तन्नो ददातु देव्यदितिर्भगश्च यद्रेक्णो नियुवैते तत् विद्वानस्माँश्च दिदेष्टु ॥२॥

Word-Meaning: - (मित्रः) सखा (तत्) तम् (नः) अस्मभ्यम् (वरुणः) जलसमुदायः (रोदसी) द्यावापृथिवी (च) (द्युभक्तम्) यो दिवं भजति तम् (इन्द्रः) परमैश्वर्यो राजा (अर्यमा) न्यायकारी (ददातु) (दिदेष्टु) उपदिशतु (देवी) विदुषी (अदितिः) स्वरूपेणखण्डिता (रेक्णः) अधिकं धनम् (वायुः) पवनः (च) (यत्) यत् (नियुवैते) योजयेताम् (भगः) (च) ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यास्सर्वदा पुरुषार्थेन सर्वानैश्वर्ययुक्तान् कारयन्तु ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी सदैव पुरुषार्थाने सर्वांना ऐश्वर्य प्राप्त करून द्यावे. ॥ २ ॥