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ईशे॒ ह्य१॒॑ग्निर॒मृत॑स्य॒ भूरे॒रीशे॑ रा॒यः सु॒वीर्य॑स्य॒ दातोः॑। मा त्वा॑ व॒यं स॑हसावन्न॒वीरा॒ माप्स॑वः॒ परि॑ षदाम॒ मादु॑वः ॥६॥

English Transliteration

īśe hy agnir amṛtasya bhūrer īśe rāyaḥ suvīryasya dātoḥ | mā tvā vayaṁ sahasāvann avīrā māpsavaḥ pari ṣadāma māduvaḥ ||

Pad Path

ईशे॑। हि। अ॒ग्निः। अ॒मृत॑स्य। भूरेः॑। ईशे॑। रा॒यः। सु॒ऽवीर्य॑स्य। दातोः॑। मा। त्वा॒। व॒यम्। स॒ह॒सा॒ऽव॒न्। अ॒वीराः॑। मा। अप्स॑वः। परि॑। स॒दा॒म॒। मा। अदु॑वः ॥६॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:4» Mantra:6 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:6» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को कभी कृतघ्न नहीं होना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सहसावन्) बहुत बलयुक्त विद्वान् पुरुष ! जो (अग्निः) अग्नि के समान तेजस्वी आप (अमृतस्य) नाशरहित नित्य परमात्मा को जानने को (ईशे) समर्थ वा इच्छा करते हो (भूरेः) बहुत प्रकार के (सुवीर्यस्य) सुन्दर पराक्रम के निमित्त (रायः) धन के (दातोः) देने को (ईशे) समर्थ हो (तम्) उन (हि) ही (त्वा) आपको (अवीराः) वीरतारहित हुए (वयम्) हम लोग (मा) (परि, सदाम) सब ओर से प्राप्त न हों (अप्सवः) कुरूप होकर आपको (मा) मत प्राप्त हों (अदुवः) न सेवक होकर (मा) नहीं प्राप्त हों ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्यो ! जो अमृतरूप ईश्वर का विज्ञान, विविध सुखों से तृप्त करनेवाली परिपूर्ण लक्ष्मी को तुम्हारे लिये देता है, उसके समीप वीरता, सुन्दरपन और सेवा को छोड़ के निठुर, कृतघ्नी मत होओ ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैः कदाचित्कृतघ्नैर्न भवितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे सहसावन् विद्वन् ! योऽग्निरिव भवानमृतस्येशे भूरेः सुवीर्यस्य रायो दातोरीशे तं हि त्वाऽवीराः सन्तो वयं मा परि षदामाऽप्सवो भूत्वा त्वां मा परिषदामाऽदुवो भूत्वा मा परि षदाम ॥६॥

Word-Meaning: - (ईशे) ईष्टे ज्ञातुमिच्छति (हि) खलु (अग्निः) पावक इव (अमृतस्य) परमात्मनः। अधीगर्थदयेशां कर्मणीति कर्मणि षष्ठी। (अष्टा०२.३.५२) (भूरेः) बहुविधस्य (ईशे) (रायः) धनस्य (सुवीर्यस्य) सुष्ठु वीर्यं पराक्रमो यस्मात्तस्य (दातोः) दातुम् (मा) (त्वा) त्वाम् (वयम्) (सहसावन्) बहुबलयुक्त (अवीराः) वीरतारहिताः (मा) (अप्सवः) कुरूपाः (परि) (सदाम) प्राप्नुयाम (मा) (अदुवः) अपरिचारकाः ॥६॥
Connotation: - हे मनुष्या ! योऽमृतविज्ञानं पुष्कलां विविधसुखप्रियां श्रियं युष्मभ्यं प्रयच्छति तत्सन्निधौ वीरतां सुरूपतां सेवां च त्यक्त्वा निष्ठुराः कृतघ्ना मा भवत ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे माणसांनो ! जो तुम्हाला अमृतरूपी ईश्वराचे विज्ञान, विविध सुखांनी तृप्त करणारी परिपूर्ण लक्ष्मी देतो त्याच्या सान्निध्यात वीरता, सुरूपता व सेवा यांचा त्याग करून निष्ठूर, कृतघ्न बनू नका. ॥ ६ ॥