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स गृत्सो॑ अ॒ग्निस्तरु॑णश्चिदस्तु॒ यतो॒ यवि॑ष्ठो॒ अज॑निष्ट मा॒तुः। सं यो वना॑ यु॒वते॒ शुचि॑द॒न्भूरि॑ चि॒दन्ना॒ समिद॑त्ति स॒द्यः ॥२॥

English Transliteration

sa gṛtso agnis taruṇaś cid astu yato yaviṣṭho ajaniṣṭa mātuḥ | saṁ yo vanā yuvate śucidan bhūri cid annā sam id atti sadyaḥ ||

Pad Path

सः। गृत्सः॑। अ॒ग्निः। तरु॑णः। चि॒त्। अ॒स्तु॒। यतः॑। यवि॑ष्ठः। अज॑निष्ट। मा॒तुः। सम्। यः। वना॑। यु॒वते॑। शुचि॑ऽदम्। भूरि॑। चि॒त्। अन्ना॑। सम्। इत्। अ॒त्ति॒। स॒द्यः ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:4» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:5» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यों को युवावस्था में ही विवाह करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (मातुः) अपनी माता से (अजनिष्ट) उत्पन्न होता (सः) वह (अग्नि) पावक के तुल्य तेज बुद्धिवाला बालक (तरुणः) जवान (चित्) ही (अस्तु) हो (यतः) जिससे वह (गृत्सः) बुद्धिमान् (यविष्ठः) अत्यन्त जवान हो (सद्यश्चित्) शीघ्र ही (अन्ना) अन्नों का (इत्) ही (सम्, अत्ति) सम्यक् भोजन करता है (शुचिदन्) पवित्र दाँतोंवाला (भूरि) बहुत (वना) जैसे सूर्य किरणों को संयुक्त करता, वैसे वनों =तेजों को (सम्, युवते) संयुक्त करे ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे अपने पुत्र पूर्ण युवावस्थावाले ब्रह्मचर्य्य में सम्यक् स्थापन कर विद्यायुक्त, अति बलवान्, सुरूपवान्, सुख भोगनेवाले, धार्मिक, दीर्घ अवस्थावाले, बुद्धिमान् होवें, वैसा अनुष्ठान करो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्यैर्युवावस्थायामेव विवाहः कार्य्य इत्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो मातुरजनिष्ट सोऽग्निरिव कुमारः संस्तरुणश्चिदस्तु यतः स गृत्सो यविष्ठः स्यात् सद्यश्चिदन्नेत् समत्ति शुचिदन् भूरि वना सूर्य इव तेजांसि सं युवते ॥२॥

Word-Meaning: - (सः) (गृत्सः) मेधावी (अग्निः) पावक इव तीव्रबुद्धिः (तरुणः) युवा (चित्) अपि (अस्तु) (यतः) (यविष्ठः) अतिशयेन युवा (अजनिष्ट) जायते (मातुः) जनन्याः सकाशात् (सम्) (यः) (वना) वनानि किरणान् सूर्य इव (युवते) युनक्ति (शुचिदन्) पवित्रदन्तः (भूरि) बहु (चित्) अपि (अन्ना) अन्नानि (सम्) (इत्) (अत्ति) भक्षयति (सद्यः) ॥२॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा स्वपुत्राः पूर्णयुवावस्था ब्रह्मचर्ये संस्थाप्य विद्यायुक्ता बलिष्ठा अभिरूपा भोक्तारो धार्मिका दीर्घायुषो धीमन्तो भवेयुस्तथाऽनुतिष्ठत ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जसे स्वतःचे पुत्र पूर्ण यौवनयुक्त, ब्रह्मचारी, विद्यायुक्त अतिबलवान, स्वरूपवान, सुखभोगी, धार्मिक, दीर्घायुषी, बुद्धिमान बनतील असे अनुष्ठान करा. ॥ २ ॥