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प्र वः॑ शु॒क्राय॑ भा॒नवे॑ भरध्वं ह॒व्यं म॒तिं चा॒ग्नये॒ सुपू॑तम्। यो दैव्या॑नि॒ मानु॑षा ज॒नूंष्य॒न्तर्विश्वा॑नि वि॒द्मना॒ जिगा॑ति ॥१॥

English Transliteration

pra vaḥ śukrāya bhānave bharadhvaṁ havyam matiṁ cāgnaye supūtam | yo daivyāni mānuṣā janūṁṣy antar viśvāni vidmanā jigāti ||

Pad Path

प्र। वः॒। शु॒क्राय॑। भा॒नवे॑। भ॒र॒ध्व॒म्। ह॒व्यम्। म॒तिम्। च॒। अ॒ग्नये॑। सुऽपू॑तम्। यः। दैव्या॑नि। मानु॑षा। ज॒नूंषि॑। अ॒न्तः। विश्वा॑नि। वि॒द्मना॑। जिगा॑ति ॥१॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:4» Mantra:1 | Ashtak:5» Adhyay:2» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:7» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब दश ऋचावाले चतुर्थ सूक्त का प्रारम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को कैसा होना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (वः) तुम्हारे (शुक्राय) शुद्ध (भानवे) विद्याप्रकाश के लिये तथा (अग्नये) अग्नि में होम करने के लिये (सुपूतम्) सुन्दर पवित्र (हव्यम्) होमने योग्य पदार्थ के तुल्य (मतिम्) विचारशील बुद्धि को वा (दैव्यानि) विद्वानों के किये (मानुषानि) मनुष्यों से सम्पादित (जनूंषि) जन्मों वा कर्मों को (च) और (विश्वानि) सब (अन्तः) अन्तर्गत (विद्मना) जानने योग्य वस्तुओं को (जिगाति) प्रशंसा करता है, उसके लिये तुम लोग उत्तम सुखों का (प्र भरध्वम्) पालन वा धारण करो ॥१॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जो तुम्हारे लिये उत्तम द्रव्यों तथा सब के हितकारी जन्मों और विज्ञानों का उपदेश करने को प्रवृत्त होता है, उसकी तुम लोग निरन्तर रक्षा करो ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ मनुष्यैः कीदृशैर्भवितव्यमित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यो वः शुक्राय भानवेऽग्नये सुपूतं हव्यमिव मतिं दैव्यानि मानुषा जनूंषि चाऽन्तर्विश्वानि विद्मना जिगाति तस्मा उत्तमानि सुखानि यूयं प्र भरध्वम् ॥१॥

Word-Meaning: - (प्र) (वः) युष्माकम् (शुक्राय) शुद्धाय (भानवे) विद्याप्रकाशाय (भरध्वम्) धरत पालयत वा (हव्यम्) दातुमर्हम् (मतिम्) मननशीलां प्रज्ञाम् (च) (अग्नये) पावके होमाय (सुपूतम्) सुष्ठु पवित्रम् (यः) (दैव्यानि) दैवैः कृतानि कर्माणि (मानुषा) मनुष्यैर्निर्मितानि (जनूंषि) जन्मानि (अन्तः) मध्ये (विश्वानि) सर्वाणि (विद्मना) विज्ञातव्यानि (जिगाति) प्रशंसति ॥१॥
Connotation: - हे विद्वांसो ! यो युष्मदर्थमुत्तमानि द्रव्याणि सर्वेषां हितानि जन्मानि विज्ञानानि चोपदेष्टुं प्रवर्त्तते तं यूयं सततं रक्षत ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी, विद्वान, राजा, वीर व प्रजेचे रक्षण इत्यादी कृत्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

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Connotation: - हे विद्वानांनो ! जो तुम्हाला उत्तम द्रव्याचा, सर्वांच्या हितकारक जन्माचा व विज्ञानाचा उपदेश करण्यास प्रवृत्त होतो त्याचे तुम्ही निरंतर रक्षण करा. ॥ १ ॥