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आ नो॒ राधां॑सि सवितः स्त॒वध्या॒ आ रायो॑ यन्तु॒ पर्व॑तस्य रा॒तौ। सदा॑ नो दि॒व्यः पा॒युः सि॑षक्तु यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥

English Transliteration

ā no rādhāṁsi savita stavadhyā ā rāyo yantu parvatasya rātau | sadā no divyaḥ pāyuḥ siṣaktu yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

Pad Path

आ। नः॒। राधां॑सि। स॒वि॒त॒रिति॑। स्त॒वध्यै॑। आ। रायः॑। य॒न्तु॒। पर्व॑तस्य। रा॒तौ। सदा॑। नः॒। दि॒व्यः। पा॒युः। सि॒स॒क्तु॒। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:37» Mantra:8 | Ashtak:5» Adhyay:4» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:7» Anuvak:3» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्य परमेश्वर की आज्ञा पालने से और पुरुषार्थ से लक्ष्मी की उन्नति करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे (सवितः) सकल जगत् के उत्पन्न करनेवाले जगदीश्वर ! आप की (स्तवध्यै) स्तुति करने को (नः) हम लोगों को (राधांसि) धन (आ, यन्तु) मिलें (पर्वतस्य) मेघ के (रातौ) देने में (रायः) धन आवें (दिव्यः) शुद्ध गुण-कर्म-स्वभाव में प्रसिद्ध हुए (पायुः) रक्षा करनेवाले आप (नः) हम लोगों को सदा (आ, सिषक्तु) सुखों से संयुक्त करें हे विद्वानो ! इस विज्ञान से सहित (यूयम्) तुम लोग (स्वस्तिभिः) सुखों से (नः) हम लोगों की (सदा) सर्वदैव (पात) रक्षा करो ॥८॥
Connotation: - जो सत्य भाव से परमेश्वर की उपासना कर न्याययुक्त व्यवहार से धन पाने को चाहते हैं और जो सदा आप्त अति सज्जन विद्वान् का सङ्ग सेवते हैं, वे दारिद्र्य कभी नहीं सेवते हैं ॥८॥ इस सूक्त में विश्वेदेवों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह सैंतीसवाँ सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्याः परमेश्वराज्ञापालनस्वपुरुषार्थाभ्यां श्रियमुन्नयेयुरित्याह ॥

Anvay:

हे सवितर्जगदीश्वर ! त्वां स्तवध्यै नोऽस्मान् राधांस्यायन्तु पर्वतस्य रातौ राय आ यान्तु दिव्यः पायुर्भवान् नः सदा आ सिषक्तु। हे विद्वांस ! एतद्विज्ञानेन सहिता यूयं स्वस्तिभिर्नस्सदा पात ॥८॥

Word-Meaning: - (आ) (नः) अस्मान् (राधांसि) धनानि (सवितः) सकलजगदुत्पादकेश्वर (स्तवध्यै) स्तोतुम् (आ) (रायः) धनानि (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (पर्वतस्य) मेघस्य (रातौ) दाने (सदा) (नः) अस्मान् (दिव्यः) शुद्धगुणकर्मस्वभावेषु भवः (पायुः) रक्षकः (सिषक्तु) सुखैः संयोजयतु (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) (सदा) (नः) अस्मान् ॥८॥
Connotation: - ये सत्यभावेन परमेश्वरमुपास्य न्याय्येन व्यवहारेण धनं प्राप्तुमिच्छन्ति ये च सदाप्तसङ्गं सेवन्ते ते कदाचिद्दारिद्र्यं न सेवन्त इति ॥८॥ अत्र विश्वेदेवगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति सप्तत्रिंशत्तमं सूक्तं चतुर्थो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे खऱ्या भावनेने परमेश्वराची उपासना करून न्याययुक्त व्यवहाराने धन प्राप्त करू इच्छितात व जे सदैव विद्वानांचा संग करतात त्यांना कधी दारिद्र्य भोगावे लागत नाही. ॥ ८ ॥